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________________ जैसवालों की नत्पत्ति पर विचार जैनियों के सर्वज्ञ वचनानुसार यह संसार क्षण २ में परिवर्तनशील है। जब हम स्वयं केवल साठ सत्तर वर्ष की हो अवस्था में नाना प्रकार के हेर फेर देखते हैं तब सैकड़ों नहीं सहस्रों वर्ष की बात में परिवर्तन होना सर्वथा सम्भव है। आज भारतवासी वर्तमान सरकार के इस शांतिमय राजत्व के समय अपने २ धर्म इतिहास आदि के खोज में तत्पर हैं। मुझ को जहां तक ज्ञान है जैनियों के इतिहास का ऐसा अध्याय, कि जिस में पूर्वाचार्यों ने कौन समय किस स्थान में किस २ जाति को अहिंसा का उपदेश देकर जैनी बनाया, इसका वर्णन ठोक २ नहीं मिलता है। किस कारण से उन लोगोंने इस विषय को अन्धकार में ही रहने दिया इसका भी पता हमें अभी तक नहीं लगा है। जन-प्रवाद और किम्बदन्तियों को बिलकुल ही असत्य समझ कर दूर कर देना भी बहुत कठिन है बल्कि बहुतसा ऐतिहासिक तत्व उन्ही प्रवादों और किम्वदन्तियों से हो पाया जाता है। चतुर्विध मंघ के साधु साध्वी, श्रावक-श्राविका के विषय में प्राचीन भण्डारों के अगले पत्र अथवा कुछ प्राचीन नाघ्र शासन या शिला लेखों के सिवा कोई क्रमवार इतिहास का आज तक पता नहीं मिला है। जो कुछ पुस्तकाकार में इस विषय पर छपे है और मेरे देखने में आये है वे सब अधिकांश में विश्वस्त प्रमाणों पर लिखे हुए नहीं भात पड़ते मोर बहुत सो अत्युक्तियों से भरे हुए हैं। ऐसी अवस्था में मैंने ऐसे विषयों से अलग रहना हो उचित समझा था। परन्तु हमारे इस "जैसवाल जेन" पत्र के सुयोग्य सम्पादक महाशय की भाशानुसार मैंने अपने दो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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