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________________ १२८ • * प्रबन्धावली * हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति गई वहां वहां भी शिवोपासना प्रचलित हुई । इन स्थानों में आज भी अनेक शिव मूर्त्तियां मौजूद हैं । जैन धर्म और हिन्दू धर्म का तुलनात्मक अध्ययन करते हुये मुझे यह विचित्र बात दीख पड़ी कि हमारे तेईसवें भगवान् श्री पार्श्वनाथ और हिन्दुओं के भगवान् शंकर में कई बातों में समता है । पहली बात यह है कि जिस प्रकार हिन्दुओं में ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों मुख्य देवताओं में सब से अधिक पूजा शिव की होती है, उसी प्रकार जैनियों के चौबीस तीर्थंकरों में सब से अधिक श्री पार्श्वनाथ ही पूजे जाते हैं । काशी शिवजी की प्रधान पुरी है । इसलिये वह हिन्दुओं का महान तीर्थ स्थान है । प्रति वर्ष लाखों तीर्थं यात्री भगवान् विश्वनाथ के दर्शन के लिये काशी आते हैं । जैनियों के भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म स्थान भी काशी ही है । श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों सम्प्रदाय के हजारों यात्री बाराणसो को पवित्र तीर्थ स्थान समझकर आते जाते रहते हैं । तीसरी बात यह है कि शिवजी की मूर्तियों में सर्प बहुतायत से बनाया जाता है। कुछ शिव मूर्त्तियों के गले में सर्प माल दीख पड़ती है और बहुतों के मस्तक पर सर्प के फनों के छत्र मिलते हैं । इसी प्रकार श्री पार्श्वनाथ की मूर्तियों के मस्तक पर भी सर्प के फनों के छत्र मिलते हैं । चौथी और अर्थ पूर्ण बात यह है कि जिस प्रकार जेन लोग मंदिर की वस्तुओं को देव द्रव्य समझकर अपने काम में नहीं लाते हैं उसी प्रकार शिवजी की पूजा में बढ़ी हुई वस्तुओं को निर्माल्य समझ कर हिन्दू लोग भी व्यवहार नहीं करते और इसलिये शिवजी का प्रसाद कोई नहीं ग्रहण करता । यह बात शंकरजी के अतिरिक्त अन्य किसी देवता पर लागू नहीं है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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