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________________ • १२२ * प्रबन्धावली - दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति से प्रकाशित हुआ है और पाश्वनाथ नामक ग्रन्थ का भूधर-कवि द्वारा रचित भाषानुवाद भी सूरत से प्रकाशित हुआ है। अन्यान्य धर्मावलम्बियों की तरह जैनियों ने भी अपने आराध्य तीर्थंकरों को नाना प्रकार स्तुति स्तवनादि की रचना की है। यह प्रथा प्राचीनकाल से लेकर अब तक चली आ रही है परन्तु अन्यान्य तीर्थंकरों की अपेक्षा भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति, स्तोत्र, कविता, भजनादि अधिक परिमाण में मिलते हैं। चाहे पुराने काल के प्राकृत या संस्कृत के स्तोत्रादि हों अथवा देशी भाषाओं के लिखे हुये भांति भांति के भक्ति रस पूर्ण पद्य, सभी में भगवान पार्श्वनाथ के नाम की प्रधानता है। इसलिये भगवान् पार्श्वनाथ को जैन धर्म का मेरुदण्ड कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति नहीं होगी। कल्पसूत्र में उनको पुरूषप्रधान विशेषण से विभूषित किया गया है। जनसाधारण में भी भगवान् पार्श्वनाथ का जितना नाम प्रसिद्ध है उतना किसी अन्य तीर्थंकर का नहीं। हजारीबाग जिले में जैनियों का प्रसिद्ध सम्मेत शिखर नामक जो तीर्थ है उस पर्वत पर २४ तीर्थंकरों में से २० तीर्थकरों ने निर्वाण लाभ किया था। इस घटना का उल्लेख श्वेताम्बर और दिगम्बर जैन ग्रन्थों में है। अन्य तीर्थंकरों के नाम से यह पहाड़ प्रख्यात न होकर भगवान पार्श्वनाथ के ही नाम से आजकल 'पारस नाथ पहाड़' पुकारा जाता है। अजैनलोगों की धारणा है कि भगवान् पार्श्वनाथ ही जैनियों के एकमात्र आराध्य देव हैं और यह विश्वास ऐसा दृढ़ हो गया है कि वे किसी जैन मन्दिर को 'पारसनाथ का ही मन्दिर कहते हैं। उदाहरणार्थ कलकत्ते के मानिकतला में हलसी बगान स्थित स्वर्गीय राय बद्रीदास बहादुर वगैरह द्वारा बनवाये हुए जैन मन्दिर पारसनाथ के मन्दिर के नाम से हो प्रसिद्ध है। परन्तु उनमें भगवान पार्श्वनाथ का एक भी मन्दिर नहीं है। इन मन्दिरों में पहिला मंदिर ८ व तीर्थंकर श्रीचन्द्रप्रभ, दूसरा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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