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● प्रबन्धावली ●
ऐतिहासिक अनुसन्धान किया है उन्हीं को पाठकों के समक्ष इस लेख में रख रहा हूं, आशा है जेन इतिहास प्रेमी भारतीय विद्वानगण इधर ध्यान देंगे और मुझे विश्वास है कि उनके परिश्रम के फलस्वरूप थोड़े ही समय मैं सत्य का और भी पता लगेगा और इस विषय की एक प्रामाणिक पुस्तक तैयार हो सकेगी। यह लिखने की आवश्यकता नहीं कि हिन्दी और गुजराती भाषाओं में दोनों सम्प्रदायों की प्राचीनता की पुष्टिकै लिये अलग अलग कई पुस्तकें लिखी गई है। मैं उन पुस्तकोंके सम्बन्ध में टीका टिप्पणी करने के उद्देश्य से अथवा श्वेताम्बर होनेके कारण अपने सम्प्रदाय की मर्यादावृद्धि के अभिप्राय से यह निबन्ध नहीं लिख रहा हूँ बल्कि निरपेक्ष होकर प्रकृत सत्यके अनुसन्धान द्वारा इस विषय के भ्रम को दूर करने की पवित्र भावना से प्रेरित होकर ही इस ओर प्रयत्नशील हुआ हूं ।
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श्वेताम्बर और दिगम्बर शब्दों की व्याख्या करने से यही धारणा होती है कि दिगम्बर सम्प्रदाय अर्थात् वस्त्ररहित : या नग्न अवस्था, श्वेताम्बर मर्थात् सफेद वस्त्रधारी सम्प्रदाय से पुराना है, पर वास्तव मैं यह धारणा भ्रमपूर्ण है। जिस प्रकार प्राकृत और संस्कृत शब्दोंके अर्थों पर ध्यान देने से यह मालूम होगा कि प्राकृत अवस्था संस्कृत से पहिले की है अतः प्राकृत भाषा संस्कृत भाषा की अपेक्षा प्राचीन होनी चाहिये परन्तु यह भ्रमात्मक है। वर्तमान समय में प्राकृत भाषा के जिसने ग्रन्थ मिळते हैं वे सब संस्कृत भाषा के बेदादि ग्रन्थों से बहुत पीछे के हैं यद्यपि नाम से यह मालूम होता है कि प्राकृत भाषा बहुत पुरानो है और उसी प्राकृत भाषा के क्रमशः परिमार्जित होनेसे संस्कृत भाषा की उत्पत्ति हुई है तथापि वैदिक काल से पूर्वका प्राकृत भाषा में लिखे हुये किसी अन्य का भी पता आजतक नहीं चलता । प्राचोन जैन इतिहास के देखने से यही मालूम होता है कि जैन सम्प्रदाय के श्वेताम्बर मौर दिगम्बर सम्प्रदायों की उत्पत्ति का इतिहास भी उपर्युक्त संस्कृत और प्राकृत भाषा के दृष्टान्त के समान हो है ।
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