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________________ * ६८ * * प्रवन्धावली * उठा है उसकी मीमांसा अपने आगमादि सिद्धान्त के वाक्य पर ही निर्भर है, और श्रीवीर परमात्मा से लेकर आज तक जितने अल्पवयस्कों की दीक्षा हुई है उन दृष्टान्तों पर ही यह प्रश्न हल हो सकता है और इस विषय पर जो झगड़ा छिड़ा हुआ है उसका यही मुख्य कारण है। परन्तु हम यह कदापि स्वीकार नहीं करेंगे। आज अपने जितने बड़े २ केन्द्र हैं जैसे 'राजनगर, जामनगर, सुरत, पाटन, पालनपूर, राधनपुर,' चाहे 'जैन' जैन-जीवन, वोरशासन' इत्यादि सर्व स्थान और पत्रिकाओं में भी उपस्थित 'दोक्षा' प्रश्न पर वादविवाद बढ़ता जाता है। 'दोक्षा' को ही प्रधान रोग समझ कर उसके निदान और औषधि की चारों ओर से चेष्टा हो रही है। मेरे तुच्छ विचार में इस रोग का कैसा ही निदान क्यों न हो, कैसी ही कड़ी से कड़ी औषधि क्यों न सेवन कराई जाय, यह रोग मुक्त को कदापि आशा नहीं है। कारण रोग दूसरा ही है। यह व्याधि कोई व्यक्तिगत, पानज, धार्मिक या सामाजिक नहीं है । यह समय का ज्वलंत उदाहरण है। आज आप जिस ओर आखें खोल कर देखें वहीं समय का फोटो खिंचा हुआ मिलेगा। जो सजन असली स्वरूप को भूल कर नामवरी के लिये चाहे अंध-विश्वास से अथवा बहकाने से गढिया प्रवाह की तरह अंध सत्ता को सरफेंगे वे थोड़े ही काल में अवश्य ठोकर खांयगे । मैं किसी पक्ष की बातें पुष्ट करने को यह लिखने का प्रयास नहीं किया हूं, बल्कि अपने श्रीसंघ को साधु. साध्वो, श्रावक, श्राविकाओं की शक्ति, समय और अर्थ अयथा नष्ट होते देखकर समय रहते अपना विचार प्रगट करना कर्तव्य समझ कर ही धृष्टता किया है। देखिये ! छोटे बड़े सभों की दीक्षा बराबर होती चली आती थो, फिर आज ऐसा प्रश्न क्यों उठा! मेरा यही एक उत्तर है कि समय के कारण ही आज यह तूफान उठा है, यह दलबंदियां हो रही हैं, लड़ने के लिये कोष संग्रह हो रहे हैं, यहांतक कि धर्म कथाओं में भी यही दंतकथा सुनी जाती है। व्याख्यान में नाना प्रकार के कटाक्षपूर्ण जोशीले भाषण हो रहे हैं और जनता इसी पर अपना महत्व समझ रही है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.035203
Book TitlePrabandhavali - Collection of Articles of Late Puranchand Nahar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherVijaysinh Nahar
Publication Year1937
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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