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इसी संग्रह वृत्ति का परिणाम आज 'गुलाबकुमारी पुस्तकालय' का बहुमूल्य संग्रह हमारे लिये-विशेषकर अध्ययनशील विद्वानों के लिये अद्भुत खजाना पड़ा है।
श्रीयुक्त नाहरजी ने संस्कृत, प्राकृत और अंग्रेज़ी की उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और उनमें उनका ज्ञान उत्कृष्ट था। आपने हिन्दी, अंग्रेज़ी और बँगला में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं। उनके जैन लेख संग्रह' तीन भागों में हिन्दुस्तान के विभिन्न भागों से संकलित किये हुये करीब ३००० शिलालेखों का संग्रह है जिनसे जैन इतिहास और पुरातत्त्व का महान् उद्धार हुआ है। उनका 'Epitome of Jainism' नामक बृहद् ग्रन्थ जैन-साहित्य का एक पठनीय ग्रन्थ है। इसके अतिरिक्त उनका विशाल संग्रहालय भी पुकार पुकार कर उनकी परिश्रम-प्रियता और सच्ची पुरातत्व-प्रियता का प्रकाश करता है। उनके विशाल पाण्डित्य, अद्भुत परिश्रम, अपूर्व शास्त्रज्ञान और विस्तृत अध्ययन की प्रशंसा में हिन्दी-साहित्य के आचार्य श्री महावीरप्रसादजी द्विवेदी ने आज से ७ वर्ष पूर्व कहा था
"विज्ञान-विद्या विभवप्रसारमधीत जैनागम शास्त्र सारम् । चन्द्रं पुराकृत तमोत्कार, त्वां पूर्णचन्द्रं शिरसा नमामि ॥" और यही कहा था, महाकवि श्री मैथिलीशरणजी गुप्त ने
'बहुरत्ना वसुदा विदित और धनी भी भूरि ।
दुर्लभ है ग्राहक तदपि पूर्णचन्द्र सम सरि ॥" जैन-धर्म का प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व ही श्री नाहरजी का मुख्य लेखन-विषय था। बिना प्राचीन इतिहास के हमलोग प्राचीन गौरव और कीर्ति नहीं जान सकते और वास्तव में यह इतना महान विषय है भी कि उसमें अवगाहन करके कोई भी अन्य विषय की
आवश्यकता नहीं रहती। साहित्यिक अथवा सामाजिक विषयों पर वे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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