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निवास स्थान
सोसायटी की प्रति में प्रन्थकर्ता का वासस्थान जो 'मोरछड़ो'
लिखा है, वह भो अशुद्ध प्रतीत होता है ।
सोसायटी की प्रति मैं
'वासे मोरछड़ो भावल सुत्री रईयेत लोक । हानद उठ वोहोत घर घर दोषवत नहीं सोग ।'
परन्तु बोकानेर की प्रति में
'अब वसह मुह छ अडोल अविचल सुखी रईयत लोक । आणंद घरि २ होय मंगल देखीये नहीं सोक ।' जोधपुर की प्रतिमें
'वर्क्स मोस अडोल अविचल सुखी रईयत लोग । आनंद उच्छा होत घरि घरि देवीयत नहि सोग ।'
मेरी प्रति में
* प्रवन्धावली *
'वसै मांच अडोल अविचल लुष रईयत लोग 1 आनंद उच्छव होत घरि घरि देषीयत नहि सोग ।'
मंगलाचरण
C.
मंगलाचरण के पदों में भी प्रतियों में अन्तर है । सोसायटी की प्रति में --
'सुक संपत दायेक सकल सींद वुद सेहत गनेस । घीगण वीजरण वीन सो पेलो तुज परणमेस |१| ' बीकानेर की प्रति में
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'चरण कमल वितु लाय । सम श्री श्री सारदा । सुहमति दे मुझ माय । करू कथा तुहि ध्याइ कै । १ '
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