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बच को मुझे दे देनेकी प्रतिज्ञा करो ।” उस कन्याके पिताने लड़की की जीवन-रक्षा के विचारसे वैसाही करना स्वीकार किया । खाणक्यने बड़ी खूबी और युक्तिके साथ चन्द्रमाके बिश्वसे प्रतिबिम्बित एक थाली दूध उस लड़कीको पिला दिया । यह काम इस खूबी से किया गया, कि उस लड़कीको पूरा विश्वास हो गया, कि मैंने चन्द्रमाको पी लिया । इच्छा पूर्ण हो जानेपर यथा समय उस कन्याके गर्भसे चन्द्रमाके समान सौम्य और -सूर्यक समान तेजस्वी पुत्रका जन्म हुआ । चन्द्रमाको पात करनेकी अभिलाषा करने वाली मातासे जन्म ग्रहण करनेके - कारण माता-पिताने उस बालकका नाम चन्द्रगुप्त रखा। चंद्रगुप्त दिन-दिन चन्द्रकलाके समान ही बढ़ने लगा और कुछ ही दिनमें बड़ा हो गया । अपने पड़ौसके लड़कोंके साथ वह गांव के चाहर चला जाता और अनेक तरह की क्रीड़ा करता था। उसके खेल अन्य लड़कोंके समान नहीं होते थे । वह किसीको हाथी, किसीको घोड़ा, किसीको सैनिक और किसीको सेनापति और आप राजानकर शासन करता था । एक दिन संयोग वश चाणक्य अचानक वहीं चले भाये मौर चन्द्रगुप्त को ५.सी चेष्टाएँ देखकरः बड़े आश्चर्यमें पड़ गये और लड़कोंसे पूछा, कि "यह लड़का किसका है ।"
बनाता
लड़कोंने कहा, – “यह एक परिव्राजकका पुत्र है; क्योंकि जब यह गर्भ में परिब्राजक.को देने की ( प्रतिज्ञाकर ली है।"
था,
तभी इसके माता-पिता तथा नामाने इसे एक
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