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( ३५ ) राजा नन्दको उन्मूलित करनेका यन करने लगा। चाणक्यने राजा नन्दकी गद्दीपर चन्द्रगुप्त नामक एक बालकको बैठानेका पूर्ण संकल्पकर लिया और वह उस बालकको अपने साथ रखने लगा। चन्द्रगुप्तके सम्बन्ध अनेकानेक मत-भेद हैं। जैनशालके अनुसार चन्द्रगुप्तका जन्म मयूर पोषकके वंशमें हुआ था। इस की कथा इस प्रकार है:
जब चाणक्य राजा नन्दको ( उन्मूलन ) उखाड़नेकी प्रतिज्ञा कर पाटलिपुत्र-नगरसे बाहर निकल गया; तब वह राजगद्दी पानेक योग्य मनुष्यकी बोज करने में लग गया । एक दिन घूमता-फिरता चाणक्य परिव्राजक वेशमें मयूर पोषकोंके प्राममें जा पहुंचा। उस ग्रामक सरदार की एक लड़की गर्भवती थी। उस गर्भवतीको यह इच्छा हुई कि चन्द्रमाको पी जाऊ; परन्तु इस इच्छाका पूण होना असम्भव था। और उसका पूर्ण न होना भी हानिकर था, क्योंकि वेद्यक शास्त्रका मत है, कि यदि गर्मवती को इच्छा पूर्ण न की जाये, तो गर्भ नट हो जाये या अयोग्य बालक पैदा हो इसलिये उस लड़कीके कुटुम्ब बड़े व्याकुल थे। इसी समय चाणक्य कहाँ पहुचा। मयूर पोपकोंने चाणक्यको सब हाल कह सुनाया। उनकी बात सुनकर चाणक्यने कहा, “यह काम है, तो यहा ही दुष्कर: पर यदि तुम मेरा कहा मानो तो मैं इम गर्भवती की इच्छाको पूर्णका सकताई।" मयूर पोषकोंने कहा.-"आप जो कुछ कहें, हम करने को तैयार है।" अब चाणक्यने कहा कि 'तुम इस कन्याके गभसे उत्पन होनेवाले Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com