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________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) .......... मूल [११-१३] / गाथा [१...] ...... पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४५]चूलिकासूत्र [२]अनुयोगद्वार मूलं एवं हरिभद्रसूरिजीरचिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [११-१३] | गाथा काधिकार श्रीअनुलासाइरेगट्टवासो जाओत्ति, वाहे रण्णा सयमेव लेहो लिहिओ जहाहीयतु कुमारी, कुमारस्स व मादीसम्बकीए रण्णा पासहियाए तस्थ हारि.वृत्ती पच्छण्णो बिन्दू पाडिओ, रण्णा अवाइय मुदिता उजेणी पेसिओ, वाइओ, वायगा पुषिछया-किं लिहिया, ते णेच्छंति कहिलं, ताकुमारेण सयमेव वाइओ, चिंतिय चऽणेण-अहं मोरियवंसियाण अपडिया आणाओ, कहमहं अपणो पिरणो आणं भंजामि', तओ अणेण तत्तसळा॥११॥ गाए अच्छीणि अंजियाणि, ताहे रण्णा णार्य, परितपित्ता उजेणी अण्णस्स कुमारस्सै दिण्णा, सम्सवि कुमारस्म अण्णो गामो दिण्णो, अण्णया तस्स कुणालस्स अंधयस्स पुत्तो जाओ, णामं च से कर्य संपती, सो अंधयो कुणालो गंधव अतीवकुश, अण्णया य अण्णायो बजेणीए लगायतो हिंडड, तत्थ रण्णो निवेदियं जहा एरिसो सो गंधव्वि जो अंधल ओत्ति, तओ रण्णा भणियं-आणेहनि, ताहे आणिओ जवणिव | तरिओ गायनि, जाहे अतीच असोगो अक्खितो. ताहे भणति-कि ते देमि ?, तओ एत्य कुणालेण गीत- 'चंगुलपपोतो त, बिंदुसारस्स | अत्तुओ । असोगसिरिणो पुत्तो, अंधो जायति कागिर्णि ॥ १ ॥ वाहे रण्णा पुफिडतं-को एस तुमी, तेण कहितं-तुम्भं चेव पुत्तो, ततो जवलियं अवसारे कंठे पधेनु सुपातो को, भणियं च-किं देमि, तेण भाणिय-कागणि मे देदि, रण्णा भणियं-किं कागिणिए व तुम करिहिसि जे कागणिं जायसि, ततो अमरहिं भणिय-सामि रायपुत्तार्ण र कागणि भण्णति, रण्णा भाणयं-कि तुम काहिसि रमण, कुणालेप माणिव-मम पुत्तो अस्थि संपतीणाम कुमारो, तओ से दिण्णं रज, सो चेव उवणओ णवरमहियसरणति अभिलायो कायव्यो, अड्वा भावाहिए छोकयं इमं अक्वाणय-कामियसरस्स तीरे व वंजुलरुक्खो महतिमहालओ, तत्थ किर रुक्खे अवलग्गि जो सरे |पहति सो जातिरिक्खजोणिओ तो मणुस्सो होति, अहमणुस्सो पनि ततो देवो होति, अहो पुणो वीर्य वारं पडति तो पुण सोधेवा व होइ, तत्थ वाणरो सपत्तिओ ओयरति पविदिणं पाणितं पातु, अण्णया पाणिपियणढाए आगतो संतो वंजुलरुक्खाओ मणुस्सिस्थिमिहु दीप अनुक्रम [१२-१४] | ॥११॥ ~148
SR No.035067
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 2 07 Nandi Vrutti Aagam 44 evam Anuyogdwar Vrutti Aagam 45
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages270
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_nandisutra, & agam_anuyogdwar
File Size20 MB
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