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________________ आगम भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) (४२) | चूलिका [१], उद्देशक , मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति: [३६१-३६९/३५९-३६७], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक श्रीदश Tuls [१] गाथा ||४८२४९९|| वकालिक रतिवाक्ये % E ॥३६॥ - %A काऊण रायामच्चादीनामवि वंदणारिहो होऊण सीलपरिक्खलणाणतरं पच्छा सीलगुणरहित इतिकाऊग अयंदिओ (मो) सकारस- स्थानम्माणरहिओ 'देवया व पुआ ठाणा' देवता इति पुरंदरं गोलूण अण्णो देवीवसेसो, सहाणाओ परिवडतो माणुसं महादुक्खम- | श्लोकाः शुभवइ, वासहो उवमाणस्थस्स इवसहस्स अत्थे, जहा सा देवता ठाणाओ चुया एवमेव सो संजमावसष्पणातो अणंतर पच्छ। मणसा सब्बओ तप्पा परितप्पइ ।। किंच-'जया अ पूइमो होइ०॥४८५|| सिलोगो, जपासहो चसदो य पुश्वभणिया, 'पूइभी पूषणारिहो सीलमंतोत्तिकाऊण रायादीण पुज्जो होऊग ओहावणाओ अणंतर सीलसुभा(चुनोतिकाऊग अपूइमो भवई अ, तहा व अपूहमो पूयणसहलासिओ तस्सऽभावे 'राया व रज्जपन्भट्ठो' राया इस राया, जहा कोई मंडलियो महामंडलियो वा सबभूमि | पस्थिवरणं पाविऊण पुणो अपुष्णोदयमणुभवमाणो केप्यावि कारणेण रज्जाओ अच्चत्य पम्भट्ठो परितप्पड़ तहा य सो पूर्वणिओ अपुज्जत्तमुबगओ समणधम्मपरिभट्ठा पच्छा तप्पइ ।। 'जया अ माणिमो होइ' ॥४८६॥ सिलोगो, जदा इति सद्द। चसदा । य पुण्यं व वणियब्वा, 'माणिमो' माणजोगो माणणीओ, माणिमो जहा सीलप्पसाएण महयामवि माणणीओ होऊण ओधाइओ अतहाभूओ पच्छा असन्माननीयभावाधिगमात्, 'सिडिब्ब कब्बडे छूढो रायकुललद्धसमाणो समाविद्धचिट्ठणो वणिगममहतरा | | सेही, वाडवोपमकूडसखिसमुम्भावियदुक्खछलम्बबहारतं कब्बडं, जहा सिट्ठी मि छटो विभयहरणाइससिओ परितप्पह, अहया | कब्बडं कुनगरं, जत्थ जलस्थलसमुभवविचित्तमंडविणियोगो णस्थि, तमि वसियचं, रायकुलनियोगण छुढो कयविकयाभावे । विभवोपयोगपरिहीणो, जहा सो तहा साधू धम्मीहि बंदणदाणेहिं पुब्धि माणितो धम्मपरिभट्ठो माणणाभाव स पच्छा। ॥३६॥ परितप्पड़, अंजलिपग्गहसिरिकंपासणप्पदाणादिजोगं यंदणं, बत्थप सादीणा य पयाणगुवजोग पूषणं, बंदणपूपणाणं अहा 4 -4- दीप अनुक्रम [५०६५२४] 9 -% [373]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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