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________________ आगम भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य|+चूर्णि:) (४२) | चूलिका [१], उद्देशक , मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति: [३६१-३६९/३५९-३६७], भाष्यं [६२...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक चूर्णी. रतिवाक्ये गाथा ||४८२४९९|| श्रीदश-18 केहिं विप्पियसमग्गो। तम्हा धम्ममि रति करह विरता अधम्माओ॥१॥णवम पदं गतं । 'संकप्पे से वहाय होई' एकादश वैकालिक लक आयको सारीरं दुक्खं, संकप्पो माणसं, तं च पियधिप्पयोगमय संवाससोगभयविसादादिकमणेगहा संभवति, 'इट्ठाणवि दीनि पर सज्जा(व्याणं सहफरिसरसरूवगंधाणं । कम्माणुसइंमि रती धम्मे भयचियोगबिरसंमि ॥१॥ दसमं पदं गतं । एवं बिससेण धम्मे | | रती करणीया, जतो 'सोवळसे गिहवासे' सह उबसेहि सोवकेसो, सो पुण सीउण्डमयपरिस्सहकिसिपसुपालवाणिज्ज-18 सेवादयो गेहलवणतंदुलछायणसमुप्पयणं बहु परिकेसह इति सोवकेसे गिहवासे, तमेवंभूतं जाणिऊण धम्मे रती करणीया, अविय ॥३५६॥ 'वित्तिविहाणममत्तं सोवकेसेण जओ य सोकसो । मोत्तूण घरावासं, तम्हा धम्मे रतिं कुज्जा ॥१॥ एकारसमं पदं गयं। किंच 'निरुव से परियाए' निग्गओ उबकोसा जओ निरुकसे सो पुब्वभाणिओ, उबके से बिहरिओलं सवओअओ सारयाओ वा गमणं | पम्वज्जापरियाओ, तत्थ उकसा ण संभवतीति धम्मे रती करणीया। णिरुवकेसो बासो परियाओज इहेब पचक्खं । परियार तेण रति करेह विरया अहम्माओ॥२॥ वासरमं पदं गतं ।। किंच-'बंधे गिहवासे' बंधणं बंधो, गिडेसु बासो गिहवासो, सो पुण तदारंभणपयत्तस्स कोसिगारकीडगुस्सेव कोसगेण अट्ठबिहकम्ममहाकोसेणं संभवइ पन्धो, तओ तेण बंधहेउभूतातो गिहवासाओ | विरएण धम्मे रती सया करणीया, अविय-'थे(घ) रचारगवद्धाओ कम्मट्ठगबंधहेतुभूताओ । विरमह रतीय धम्मे करेह जिणवीरम| णियंमि ॥१॥ तेरसमं पदं गतं । किंच 'मोक्खे परियाए' परिआओ पुग्वभणिओ, तमि परियाए सति अविहकम्मनिगल ॥३५६॥ संकलासु झाणपयोगपरिसुद्धच्छिमासु जीवस्स सतो भवति मोक्खो, जेण परियाओ(अदृषिदकम्मनिगला साहू छएइ सुझाणाओ सो) मोक्खो तेण रई धम्मे जिणदेसिए कुणह ॥१॥ चोदसमं पदं गतं । किंच-'सावज्जे गिहवासे' सह वज्जेण सावज्जो, %ANCCॐॐॐ दीप अनुक्रम [५०६५२४] SSESSA [369]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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