SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) चूलिका [१], उद्देशक ], मूलं [१/५०६-५२४] / गाथा: [४८२-४९९/५०६-५२४], नियुक्ति: [३६१-३६९/३५९-३६७], भाष्यं पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक + C त्रितयं + गाथा ||४८२४९९|| 4 भी- अवकमणमवहावणं, तं अबहावणं अणुस्पेहिउँ साँलं जस्स सो अवहावणाणुप्पेही, अब इति एतस्स पागए औगारो भवइ, एवं ओहाणुकालिकाप्पेही तेण ओहाणुप्पेहिणा, एवं कयसकप्पेण पुव्वं ओहावणाओ 'अणोहाइएण' एक्सदो अवधारणे, किमबधारयति , णियमा चूौँ । अणोहाइएण अट्ठारसट्ठाणाणि चिंतणीयाणि, पच्छा चिंतणं अणत्थर्ग, तेसिपि भावोपदरिसणस्थमिदमुच्यते-'हयरस्सिगयंरतिवाक्ये कुसपोयपहागाभूआई' हयो-अस्सो तस्स रस्सी-खलिणं, सो य सुदप्पिओऽपि सलिणेण णियमिज्जद, गयो हत्थी तस्स४ वि लोहमयं न(म)स्थयखणणमंकुसो, तेण सुमचोऽवि ( विणतं गाहिज्जा, जाणवतं-पोतो तस्स पड़ागा सीतपडो, पोतोऽविसीय|पडेण तेण वीयीहि न खोहिज्जइ, इच्छ्यिं च देसं पाविज्जइ, हयादीणं रस्सिमादओ नियामगा अतो पत्तेयं ते सह पढिज्जति॥३५३।। | 'हयरस्तिगयंकृसपोतपडागाभूआई' भूतसदो इह सारिस्सवाची, जहा कोऊहलभूयंमिवि लोए आसि पन्चयंते, अओ तम्भू ताणि ते हयरस्सि०सरिसाणि एवं हयरस्सिगर्यकुसपोयपडागाभूताई, इमाई अट्ठारस द्वाणाणित्ति, इमाणिनि जाणि य णियमिताणि | तानि हिदए काऊण पच्चक्खाणि व भणति, अट्ठारस इति संखा, णामति वा ठाणति या भेदत्ति वा एगट्ठा, भणियं च-"इच्चेएहिं चउएहिं ठाणेहिं जीवा णरतियत्ताए कम्मै पकरेंति," अतो इमाणि अट्ठारम हाणाणि जहा हयादीणं रस्सिमादीणि नियामगाई तहा जीवस्स ओहावण कुन्बयओ अहिनिम्बचेऊण भिक्खुमावे नियामगाई,तत्थ पढम ताव दुकरजीवियन दंसह-'हमोइत्यादि,इंति भोत्ति संबोधनद्वयमादराय, समाए दुप्पजीवी नाम दुक्खेण प्रजीवणं,आजीविआ, एत्थ संजमे रयाणं तुन सेति, जतो य एवं तम्हा धम्मे । भाई करणीया, तत्थ कामस्थी विसया भोगा सद्दादिविसया, अषिय कुसग्गा इव इयरकाला, कदलीगम्भा वऽसारगा । जम्हा गिहत्थ धम्मे, भोगे चइऊण कुणहरई (धम्मे]||२॥ वितियं ठाणं गतं । किंच'भुज्जो य सातिबहुला मणुस्सा भुज्जो-पुणो२, साति ४- 1 दीप अनुक्रम [५०६५२४] ARCH * ॥३५३।। [366]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy