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________________ आगम (४२) भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य+चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा: [६०-१५९/७६-१७५), नियुक्ति : [२३५-२४४/२३४-२४४], भाष्यं [६१-६२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक उद्देशः२ [१५...] गाथा ॥६० पी-1 वाहे जइ किचि अजाणयाए ण सम्ममालोइयं पुरेकम्मपच्छाकम्मादि तस्स पुण पटिकमज्जा, तत्थ य पडिक्कमाणेण बोसट्ठ- कालिका देहेन काउस्सग्गे चिंतेज्जा 'अहो जिणेहिं असावज्जा ॥११॥ सिलोगो, ताहे- 'णमुकारेण ॥१५२ ॥ चौँ दा सिलोगो" नमोकारेण" "नमो अरिहंताणं" तिएतेण नमोक्कारेण काउस्सग उस्सारेता जिणसंथवो ‘लोगस्स उज्जो-15 ५० अगरे' भनइ, तं काढऊण जइ पुण्यं ण पट्टवियं ताहे पटुविऊण सज्झायं करेड, जाव साधणो अपने आगच्छंति, जो पुण खमणो * अत्तलाभिओ वा सो महत्चमेत वा सज्झो (बीसत्थो) इमं चिंतेज्जा-'बीसमतो इम' ॥१५३॥ सिलोगो, साहसु य गएर आयरियं ॥१८९॥ आमंतेहि (ति), जेण परिग्गहण सोहणं, अह न गाहियं ताहे भणइ-खमासमणो! देह इओ जस्स दायच्वं इच्छाकारेण, ताहे जइ तेहि दिने | तो सोहणं, अह भणति-तुम चेव देहि, ताहे 'साहवो तो चिअत्तेणं.' ॥ १५४ । सिलोगो, चिअत्तं णाम अन्नपाणे अप-| ४ डिबद्धो सम्वभावेण, जहावत्थु भणइ-इच्छाकारेण अणुग्गहं करेह, न रायवेडिमिह मण्णमाणो निमंतति, जब कोई इच्छई सोहर्ण, तेहि सदि मुजिज्जा ।' अह कोई न इच्छिज्जा.' ॥१५९ ॥ सिलोगो, अह पुण तेसिं साहुणं कोईवि न इच्छेज्जा ताहे एक्क-16 Pओ उ मुंजज्जा, किंच- तेण साहुणा आलोय भायणे समुद्दिसियब्ध, जयं नाम तदुवउत्तेण, अपरिसाडियं दुविई-लंबणाओ (हत्थाओ, मुहाओ य, उवार्य चेव जतं जं न परिसाडइ, तं पुण भोयणं--'तित्तगं व ॥१५६ ॥ सिलोगो, तत्थ तित्तग एल-15 गवालुगाइ, कडुमस्सगादि, जहा पभृएण अस्सगेण संजुतं दोद्धग, कसायं निष्फावादी, बिलं तक्कंपिलादि, मधुरं जलखीरादि, कालवणं पसिद्ध चेब, एताणि कस्सइ हितइच्छिताणि जहा पुष्यमुसिणभावियसरीरस्स सीताहितत्तणे या उसिणं मधुरमेव पढिहाइ,15 एवं सब्वत्थ जाणियव्वं, तम्हा साहुणा सम्भावाणुकूलेसु रागोण काययो, पडिकूलेसु य दोसो, 'एयलद्धमन्नत्थपउत्त'-मिति CCUSANG १५९|| दीप अनुक्रम [७६१७५] ॥१८९॥ RRCॐ NESCORRC [202]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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