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आगम
(४२)
भाग-6 "दशवैकालिक- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [५], उद्देशक [१], मूलं [१५...] / गाथा: [६०-१५९/७६-१७५], नियुक्ति : [२३५-२४४/२३४-२४४], भाष्यं [६१-६२] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि
प्रत
सूत्रांक
[१५...] गाथा ॥६०१५९||
श्रीदश- तत्थ फामुएसणिजं णाऊण पडिगाहेजा । किंच 'गुम्विणीए उवनस्थं' सिलोगो (९८-१७१) गम्भी जीएसवालस्तन्यवकालका अस्थि सा गुग्विणी, तीय दोहलगादीणिमित्तं विविहमणगप्पगारं, उन्नत्धं नाम उवकप्पियं, तं पुण भोयण पाणं वा|
दयाने विधिः होज्जा, तत्थ जे सा मुंजइ कोइ ततो देइ तं ण गेण्हियवं, को दोसो, कदाइ तं परिमियं भवेजा, तीए य सद्धा ण विणीया
होजा, अविणीये य डोहले गब्भपडणं मरणं वा होजा, भुत्तसेसं पडिच्छइ-जं से भुत्तुबरियं तं पडिच्छेजा। किं च 'सिया य ॥१८॥ समणहाए' सिलोगो (९९-१७१ ) सिया णाम कदायि गुठिवणी समणट्ठाए-समणनिमितं, कालमासिणी नाम नवमे मासे |
गम्भस्स बढमाणस्स, जइ उडिया संजतट्ठाए निसीएआ, जहा निसण्णा सुहं भिक्खं दाहामित्ति निसीयइ, निसण्णा संजतट्ठाए। | उद्वेति, तमेतेण पगारेण देंतियं पंडियाइक्खे-न मे कप्पइ तारिसं, जा पुण कालमासिणी पुन्युट्टिया परिवेसेंती य थेरकप्पिया। | गण्डंति, जिणकप्पिया पुण जद्दिवसमेव आवनसचा भवति तओ दिवसाओ आरद्धं परिहरति, तम्हा दंतियं पडियाइक्खे-न मे
कप्पड़ तारिस । किंच. 'धणगं पेजमाणी' सिलोगो (१०१-१७१) थणे अद्धदिने जइ सा तं साहुणो अडाए दारगं वा | दारिग वा अद्धपअियं निक्खिविऊण पाणगं भत्तं वा आहरेजा, तत्थ गच्छवासी जति थणीवी णिक्खितो तो ण गेण्हति | रोवतु वा मा वा, अह अचंपि आहारेति तो जति न रोबइ तो गेहंति, अह अपियंतओ णिक्खित्तो थणजीवी रोवह तो ण मागेण्हति, गच्छनिग्गया पुण जाव थणजीवी ताब रोवउ वा मा वा अपियंतओपियंतिओचा न गेण्हंति, जाहे अनंपि आहारेउं पयत्तो भवति ताहे जब पियंतओ तो रोबइ मा वा ण गेण्हंति, अपियन्तओ जदि रोवद परिहरति अरोवंते गण्डंति, सीसो आह- को तत्थ
॥१८॥ | दोसोति, आयरिओ आह-तस्स निक्षिप्पमाणस्स खरेहिं हत्थेहि घेप्पमाणस्स य अपरित्तत्तणेण परितावणादोसो मजारा
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दीप अनुक्रम [७६१७५]
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