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________________ आगम (४२) भाग-6 “दशवैकालिक'- मूलसूत्र-३ (नियुक्ति:+|भाष्य +चूर्णि:) अध्ययनं [३], उद्देशक 1, मूलं H/ गाथा: [१७-३१/१७-३१], नियुक्ति: [१८०-२१७/१७८-२१५], भाष्यं [४...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४२] मूलसूत्र-[०३] दशवैकालिक नियुक्ति: एवं जिनदासगणिरचिता चूर्णि प्रत सूत्रांक - गाथा चूणों ||१७३१|| श्रीदश वग्धी आगओ, तस्स कहिय सीहेण मारिओ, भणिओ य-सो पाणिय पाउं णिग्गा, वग्यो नट्ठो, एस भेओ, जार कागो आगओ, कामकथा बैंकालिकतेण चिंतिय-जह एतस्स न देमि तो काउ काउति वासियसद्देण अण्णे कागा एहति, तेसि काऊरगस देणं सियालादि अण्णे या बहोरिमिते केत्तिया यारेहामि, तो एतस्स उपप्पयाणंदेमि, तेण तओ तस खंडं घेत्तण दिण्णं, सा तं धनुगआ जाय। ३ अध्ययने सियालो आगओ, तेण णायमेतस्स हढेण मारण करेमि, तेण भिउडि काऊण बेगो दिण्णो, णडो सियालो, उक्तंच 'उत्तम प्रति पानेन, शूरं भेदेन योजयेत् । नीचमल्पप्रदानेन, समतुल्यं पराक्रमः ॥१॥' अत्थकहा गता। इदाणि कामकहा- 'रूवं ॥१०५॥ वयो य पैसो' गाहा (१९४-१०९) रूपकहाए वसुदेवबंभदत्ता, रूवेत्तिगयं । इयाणिं वएत्ति, तत्थ जइ तरुणे वए बट्टा तो, कामिज्जब, इतरहा न कामिज्जइ, वएत्तिगतं । इदाणिं वेसोत्ति, वेसो नाम वत्थाभरणादीहिं कीरइ, तेहिं जब उववेओ तो कमणीओ भवति, एत्थ उदाहरण- राया पासादगओ पलोएतो अच्छद, तेण य कालमहिला कुसुभरत्तेहि पाउएहिं हरियसले चमकती दिवा,तओ सो अझुववण्यो,मणुस्सा पेसिया आणेह एयं,सा आणिया जाव विरूवा, पडिविसज्जिया. राइणा भणिय-'सुमह-16 ग्योवि कुसुभो धेचव्यो पंडिएण पुरिसेण । जस्स गुणेण महिलिया,होइ सुरुवा कुरुवाविशा'वेसोत्तिगयं । इदाणि दक्विण्णन्ति,दाणं देंतोराया दाएहि विख्यो अवयस्थोऽवि कामिज्जइ, एस दक्षिणकहा, एस्थ अयलमूलदेव उदाहरणं, अपलो मूलदेवी व देवदत्ताए गणियाए लग्गा, अपलो देइ, मूलदेवो एमेव विसयसिक्खाहि, कुणी विपरिणामेइ ताए वणिज्जतं, तीए कुट्टिणी भणिया-अयलं ता F ||१०५॥ भणासु-उच्छु मे देहि, तेण से सगडं भरेऊण पेसियं, तओ सा भणइ-किं मणे हस्थिणी जेण सगड़े मज्झ भरियं पेसेइ, मूलदेवस्स | ट्रा पसियं, तेण उच्छुगंडियाओ छोडेऊणं चाउज्जाएक वासेत्ता तत्थेव सूर्य लाएता पेसियाओ, एवं कुट्टिणी पत्तियाषिया, गंध-1G दीप अनुक्रम [१७-३१] [118]
SR No.035056
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 06 Dashvaikaalik Niryukti Evam Churni Aagam 42
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages398
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size34 MB
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