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________________ आगम (४०) भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2 प्रत सूत्रांक दीप अनुक्रम [१] नमस्कार राया मतो, सो राया जातो, सुचिरेण दोवि पब्बतियाणि । एवं सुकुलपच्चायाती तमूलागं च सिद्धिगमणं ।। अहवा वितिय नमस्कार व्याख्यायाम उदाहरणं- महुरा णगरी, तत्थ सावओ सम्बजीवस्सरण्णो, तत्थ हंडि चोरो णगरं मुसति, अण्णदा गहितो, सूले भिण्णो, पडियरहफिले आरो॥५९१॥ चितिगावि से णज्जिहिति, पच्छण्णा माणुसा पडितरंति, सो सावओ तस्स अदूरबत्ती वयति, सो भणति- सावगा! तुमंसि अ-15 ग्यादि शुकंप ओ, अहं तिसाइओमि, देहि मम पाणितं जा मरामी, सावओ भणति-इमं णमोक्कारं पढ जतो पाणितं आणेमि, जदि विस्सारेसि आणितंपि न देमि, सो ताए लोमयाए भणति, सावओ पाणितं गहाय आमतो, तं वेलं पाहामित्ति णमोक्कारं पढं-17 तस्स विणिग्गतो जीवो, जक्खभवणे जक्खो जाओ, सो य सावओ तेहिं मणुस्सेहिं गहितो चोरमत्तदायगोति, रणो णिवेदिय, भणति- एयपि यले भिंदथ, आघातर्ण णिज्जति, जक्खो ओघि पउजति, जाव सावगो य अपणो य सरीरं पेच्छति, ताहे| पवयं उप्पाडेऊण गगरस्स ओप्पि ठितो, ता तुम्भे मम एवं भट्टारक ण जाणंह , खमावेह, मा से सब्बे चूरेहामी, ताहे खाति। देवणिसीयस्स पुग्वेण य से आयतणं कतं । एवं फलं भवति णमोकारेण परलोएवि ।। ॥ इति नमोकारनिज्जुत्ती सम्मत्ता॥ इदाणि सुर्च भणति * ५९१॥ नंदिमणुयोगदारं विहिवदुषघातियं च णातूण । कातूण पंचमंगलमारंभो होति सुत्तस्स ॥१०॥१॥१०२५ ॥ कतपंचनमोकारो करेति सामाइयंति सोभिहितो । सामाइयंगमेव य जंसो सेसं तओ वुच्छ ॥१०॥२॥१२०६|| ॐन ***अत्र नमस्कार-नियुक्ति समाप्ता: *** अत्र अध्ययनं-१- 'सामायिक' आरभ्यते *** (300)
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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