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आगम
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भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2
की
प्रत सूत्रांक -1
PI बुदिः
दीप अनुक्रम [१]
नमस्कार | धरेति णवित्ति , सो भणति- मम पंडरओ कागो अहिट्ठाण पविट्ठो, ताए सुहिज्जिताण कहित जाव रणा सुर्य, पुच्छितो, कहिये । औत्पात्ति व्यायामालारणा से सुकं मुक्क, मंती य निउत्तो । ततिओ विट्ठविक्खरणे भागवतो सुहग पुच्छति, खुट्टगो भणति- एस चिंतेति- एत्था ॥५४८||
विण्हू अस्थि णस्थिति।
उच्चारे, धिज्जातियस्स मज्जा तरुणी, गामंतरं णिज्जमाणी धुत्तेण समं लग्गा, गामे बबहारो, विभत्ताणि पुच्छिताणि, आहारविरेयणं दिण्णं, तिल्लमोदगा, इयरो धाडिओ। ____ गये, हत्थी महतिमहालओ जो तोलति तस्स सतसहस्सं देमि, णावाए तोलति, लछित्ता णावाए उत्तारितूण पाहाणाणं | भरिया, जाव से लेहा, पाहाणा तोलिया, एत्तिय तुलति, जितो। ___घतणो भंडो सव्वरहस्सितो, राया देवीय गुणे कहेति-णिरामयं, सो मणति-ण भवति, किह ?, जया पुप्फाणि केसवाते ढोएति, तहत्ति विण्णासियं, शाए हसिय, णिबंधे कहियं, णिव्विसओ, सुणति, उवाहणाण भारेण उवद्वितो, उडाहभीताए रुद्धो।
गोलओ णक पविट्ठो जतुमतो,सलागाए तावत्ता कड्डितो। खंभो तलागमज्झे, जो तडे संतओ बंधति तस्स सयसहस्सयं दिज्जति, तमेव खोलग बंधितूण पडिबंधितूण बद्धो, जितो | 8५४८॥
खुट्टए, पारिन्बाइया भणति-जो जे करेति तं मए कायब्वं कुसलकम्म, खडओ गतो भिक्खस्स, पडहओ वारितो, गओ शराउलं, दिट्ठा, सा भणति- कतो गिले, तेण सागारियं दातिय, जिया, काइएण य पउमं लिहिय, सा न वरति, जिता ।
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