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________________ आगम (४०) भाग-4 “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) 2 अध्ययनं H मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2 की प्रत सूत्रांक I-1 बाद्ध दीप अनुक्रम [१] नमस्कार महल्लो उदाहु छिहा १, किह ते चिंतियं, भणइ--दोवि समाणि, पीए जामे छालियालिडियाओ, बातेण, ततीए खाडइला/त्पाति व्याख्यायादि जत्तीया पंडरगा तत्तिया कालगा, जत्तिय पुच्छं तत्तीय सरीरपि आयामेण, चउत्थजामे सदाविओ वार्य ण देति, तेण कंटियाए ॥५४६॥ पच्छिन्नो उडितो, भणति- किं जग्गसि सुयसि ?, भणति-जग्गामि, किं करेसि , चिंतेमि, किं चिन्तेसि ?, कतिहिं सि जातो 1,10 तो कतिहि, तेण भणिय-पंचहि, केण केण ?, रण्णा वेसमणेण चंडालेणं रयएणं विछिएण, तेण माया पुच्छिता, णिबंधे 8 है कहितं, सो पुच्छति-किह ते णायति, सो भणति-येन यथान्यायेन राज्ज पालयसि तेण णज्जसि रायपुत्तोत्ति, बेसमणो दाणेणं,* रोसेण चंडाले णं, सव्वस्स हरणेण रययो पुण, जेण ममं उच्छुपसे तेण विछितोति, तुट्ठो राया, सम्वेसि उरि ठवितो भोगा दय से दिण्णा ॥ पणितए दोहि पणिय बद्धं, एगो भणति- जो एताए लोमसियाए खाति तस्स तुम किं देसित्ति, इयरो भणति- जो |जिव्वति तेण जो जगरदारे मोदओ ण णीति सो दातव्बो, एगो जीतो, इतरो मग्गति, सो से रूवर्ग देति, इतरो णेच्छति, ताहे हैदोण्णिा, जाहे ण तेहिं तूसति ताहे तेण जयकारा ओलग्गिता, बुद्धी दिण्णा, ताहे पूवियावणाओ एगं मोदगं गहाय इंदखीले ठवेति, I भणितो- णीहि मोदगा !, ण णीति, जीतो ।। रुक्खे फलाणि, मक्कडा ण देंति, पाहाणेहिं हया, तेहिं फला खिचा।। ॥५४६॥ .131. खड्डए पसेणती राया, पुत्तो से सेणिओ, रायलक्षणसंपण्णो, तस्स किचि ण देति-मा मारिज्जिहित्ति, सो दिए णिग्गतो, लावण्णातडं आगतो, पणियसालयाए ठितो, तस्स लाभो तप्पभावेण, सो मच देति, धूताए संपक्को, दिण्णा रायाए लहा विस | ज्जितो, सो आपुच्छति, सा मणति- तुमहिं कहि , सो भणति- अम्हे पंडरकुंडगा रायगिहे गोवाळा पसिद्धा, गतो य, आवष्ण (255)
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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