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________________ आगम (४०) भाग-4 "आवश्यक'- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८७७-८७८/८७७-८७९], भाष्यं [१५१...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र-[४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनियुक्ति: एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि-2 प्रत श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात सुत्रांक नियुक्ती १४९९ इदाण परचक्खाणे-तेतलिपुरै नगर, कणगरहो राया, पउमावती देवी, राया भोगलाभो पुचे जाते २ वियंगेति, तेतलि अमच्चो, कलारो मसियारे सेट्ठी, तस्स धूता पोट्टिला, आगासतलए दिट्ठा, मम्गिता लद्धा य, अमच्छ पउमावती य भणति-ए- ख्याने कुमार किहषि सारक्ख, तो तब मम भिक्खामायणं भविस्सति, मम उदरे पुचो, एतं रहिस्सग सारवेमो, संपत्तीय पोटिला य देवीतेतलीपुत्रः य समं चेव पस्ता, पोडिलाए दारिया देवीए दिण्णा, कुमारो पोटिलाए, संवडति, कलाओ य गेण्हति । अण्णदा पोडिला तेतलिस्स अणिट्ठा जाता, नामवि ण गेहति, अण्णदा पव्वइयाओ पुच्छति-अस्थ किंचि जाणह जेण अहे पिता होज्जा, ताओ भणंति-अम्हं एतारसं न वति, ताहे से धम्मो कहितो, सा य संवेगमावण्णा, आपुच्छति-पष्चयामिति, सो भणति-संगोहेज्जासि, ताए पडिस्सुतं, सा सामण्ण कातूणं दियलोगं गता । सो राया मतो, ताहे तं कुमारं पउरस्स दंसेति रहस्स च भिंदति, ताहे सो अभिसित्तो,। कुमारमाता भणति-सेतलिस्स सुट्ठ वट्टेज्जा, एतस्स पभावेण संसि जातो, तस्स णाम कणगाओ, ताहे सो सव्वगतो जातो, देवो तं संबोहेति, न संयुज्झति, साहे रायाणगं विप्परिणामेति, सो त णो आढाति, वीधीएविन कोइ आढाति, बाहिरियावि परिसा दासपेसादिगा जाव अभंतरिगावि पुत्तसुण्हादिगा, एवं चेव विपि न लभति, ताहे विसण्णो तालपुडगं विस खाति, न मरइ, कंको असि खंघे नस्सति, सोवि न छिंदति, वेहासं करेंतस्स रज्जु छिण्णो, पच्छा पाहाणं गलए बंधित्ता अस्थाहं पाणियं पविट्ठो, तस्थवि थाही जातो, ताहे तणकूड़े अग्गि दातुं पविट्ठो, तत्थवि न उज्झति, ताहे अडविं पविसति, तत्थ पुरतो छिण्णगिरिसिहर-1 | ॥४९९॥ कंदरप्पवाते पिडतो कंपेमाणेष्व मेदिणितलं आकङ्गंतव्य पादवगणे विफोडेमाणेच अंबरतलं सव्वतमोरासिव्व पिडिते पच्चक्खमिव सर्व कर्तते भीमे भीमारवं करेंते महाबारणे समुट्टिते, दोसु चवखुनिवातेसु पयंडधणुजुत्तविप्पमुको मुखमेचवसेसा धरणितलपवेसाणि दीप अनुक्रम SARKES (208)
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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