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________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H भाग-4 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) 2 अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [८६१-८६४/८६१-८७६], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिताः आगमसूत्र [४०]मूलसूत्र [१] आवश्यकनिर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणिरचिता चूर्णि -2 भाष्यं [ १५१] थी आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥४९४ ॥ संतहि उज्जाणे ठितो ( दिट्ठो), राया गतो, खामिता य, नेच्छति मोतुं, जदि पव्वयंति ततो यामि, ताहे पुच्छति, पडिस्सुर्य, एगत्थू गहाय चालिया जहा सट्टाणे पडियाणि, लोओ कओ, पव्वइया, रायपुत्तो सम्मं करेति ममं पितियएत्ति, पुरोहितसुतो दुउंछति अम्दे एतेण कवडेण पथ्याविता, दोषि मता, गता देवलोग, संगार करेंति-जो चयति पढमं सो संबोधितव्यो, पुरोहितसुतो तीए दुर्गुछाए रायगिद्दे मेतीपोट्टे आगतो, तीसे एगा सेट्टिणी वयंसिया, किह जाता ?, सा भैंस विकिणति, ताए भण्णति-मा अण्णत्थ हिंडाहि, अहं सव्यं किणामि, दिये दिवे आणति, एवं वासि पीती घृणा जाता, तेसिं चैव घरस्स समोसिताणि ठिताणि, साय सजीव तेण से नामं कर्त मेतिज्जोति, संबद्धितो, कलाओ गाडितो दे संबोहितो न सं णिंद, वाहे मेतीए रहस्सियं पवावती, पुतो दिण्णो, इतरीएचि धूता मतिया दिष्णा, पच्छा सहिणीए पास जीवंती | पाडिओ भावेण ता अहं गेण्हाविओो, देवो मेतं तीसेवि अज्ज विवाहो कओ होन्तो, भत्तं च नातगाणं दिष्णं होतं, ताहे ताए मेताए सिहं, ताहे रुट्ठो देवाणुभावणं गंत सिविताए पाडतो, तो असरसीओ परिणेसित्ति खट्टाए छूढो, ताहे देवो भणति किह १, सो भणति अवष्णोति, तत्थ संबुद्धो भणति एतो में मोएहि, किंचि य काल अच्छामि, वारस वरिसाणि, तो भण-किं करोमि ?, भणति रष्णो धृतं दयावेहि, तो सच्चा अकिरिया ओहाडिया भविस्सतिति, ताहे छगलओ दिण्णो, सो रतणाणि वोसिरति, तेण रतणाणं बालं भरितुं पितु कहिओ - रण्णो धूतं वरेति, सो रतणाण थाल गहाय गतो, भणितो- किं मग्गसि, तेण भणितं धूतं, ताहे निच्छूढो, एवं दिवसे लं गण्डति ण य देति, अभएण भणितं कतो तुज्झ रतणाणि ?, तेण भणितं छगलओ हगति, भणति अम्हवि दिज्जतु, दिष्णो (203) समतायां मेवायदाहरणं ॥४९४॥
SR No.035054
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 05 Aavashyak 2 Niryukti Evam Churni Aagam 40
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size26 MB
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