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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यंक [44 ६१] दीप अनुक्रम [५६ ६२] श्री श्राचा रोग सूत्र चूर्णिः ॥ ४१ ॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र- १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [१], उद्देशक [७], निर्युक्ति: [१६४-१७१], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक ५५-६१] वाउकाए अपि पदत्थे एस्थवि ता वाउकायसमारंभे उपातीयमाणा-उवेच वायुमुहं तदारमति, आतपमाणा जं भणितं गेव्हेंता पुढ विमादी उबरोहे बट्टंति, एवं पृढविकाए उवाइयमाणा सेसेविकाए वधिन्ति, एवं एकेकेकाए उत्रतीयमाणा सेवघाताय भवति, | अहवा वायुं समारभंता वायणामगोयातिं कम्माई करेंता तत्थेव उववअंति, एवं सेसेसुवि, अहवा एत्थ पाणातिवाद उब तियमाणा | जं भणितं तंमि वर्द्धता मुसावाएव जाय राइभसे, एवं परसंजोएगं एकेके उवाइयमाणा सेसेवि ओतरियति, के ते १, जे नाणायारादिसु ण रमंति, थले मच्छा वा आरंभमाणा - असंजममाणा, पीती गयो विविधो गयो विणओ सो नाणादि, आयारम्भद्वावि पासत्थादयो कुलिंगिणो वा मणंति-वयमवि धम्मत्रिणीया, भणियं च- 'दुगुणं करे सो पावं, पत्थवि जाण उवाश्यमाण'ति नाणादिविणए जं भणितं रमंति ते आरंभमाणा विणयं वदंति-जहा वयमवि अहिंसा सुबता देता, ते पुण 'छंदोवणीया' छंदो गेही अभिलासो एगई, छंद्रेण उम्मम्गं उवणया, दाणादिदेहसकारेहिं आहारादिसु य कुलिंगलिंगस्था ये विस एस अहियं उबवण्णा अज्झोचवणा तचित्ता तम्मणा तल्लेसा, छंदो-अभिसंगमित्तं तिब्वअभिनिवेसो अज्झोवातो, ते तिष्णि तिसहृपाचातियसया स्वच्छंद विगप्पियं ससत्यपरिग्गहे नाणाविहाई लिंगाई अस्सिया, तत्थ दगसोयरिया चउसडीए मट्टियाहिं सोएमाणा जमणियमे घोसंति, पत्ताणं उपभोगो एवमादि, सक्का पारस धुत्रगुणे घोसेंता विहारारंभमादि कारेंति ।। अतो अज्झोनवणो 'आरंभसत्त'त्ति, दव्वारंभो उच्चालितंमि पाए कायद्यातो, भावरंभो हिंसातिसमुत्था कोहादि सज्जणं संगो दब्वे पुत्तकल साहिरष्णसुत्रष्णादि भावे रागदोसा कम्मा वा संगो, विग्धो वक्खोडो बंधणंति वा एगट्ठा, मिसं पगारेहिं वा करेंति, के ते १, जे आयारे या रमंति, अप्पसत्थ गया, तप्पडिपकखभूता 'एत्थवि जाण अणुवाइयमाणा जे आयारे रमंति, आरंभमाणा त्रिणयं वदंति, पसत्थ लोकविजययोनि क्षेपाः [53] ॥ ४१ ॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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