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________________ आगम भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२.], चुडा [३], अध्ययन [-], उद्देशक [-],नियुक्ति : [३२७-३४१], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १७५-१७९] (०१) प्रत वृत्यक [१७५१७९] श्रीआचा- विदेहेन विदेहवइदिना, विदेहजचा, प्रियं करोति प्रेयकारणी, नास्य पोजणं, अणोजा सेसवइ, दविणजातस्य पती, दक्खे क्रियासु । भावनारागन |पतिण्णो जाणका, पडिरूवो रूबाइगुणो, भद्रखभावः भद्रका मध्यस्थ इति, विणीतो विधादिगुणजुत्तोविण माणं गच्छति, णात ध्ययन चूर्णिः प्रत्तेधि ण थडे, णातकुलाआतः, विदेहदिनोति विदेहाए जेणिय जातो विदेहवर्चभूतो वा, गुरूहि अब्भणुनातो दोहिं वासेहि ॥३७६॥ NIगतेहि, मणुस्सधम्माओ मणुस्सभावो सोइंदियादि वा, णाण बुझाहि चरितधम्मे, अंतोदीपं दीपशिखायद सब्बाओ, विधिअDणियहा सरीराओ, पोरिसपमाणपत्ता चतुभागो, मंजुमंजुत्ति मधुरं, अपडिबुज्झमाणे ण विभाविञ्जति, रोरेणं कंको भवति, छिन्न-10 सोतित्ति इंदियसोएहि न रागद्वेषं गच्छति, कह छिन्नसोते, कसपादी दिट्ठतो, उदगं कसभाणे ण पविसति, एवं भगवं उदगं॥ ण पविसति, संखे जहा रंगणं ण गेण्हति एवं भगवपि कम्मं, जीवो अपडिहयगई एवं भगवंतो जत्थ सीतउण्हभयं वा, जत्थ न । | पडिहम्मति गतिगमणमि, एवं भगवं ण किंचि अवलंबति तवं करेंतो देविंदादी, एवं वसहीए गामे वा अपडिबद्धं, सारयं न | कलुसं, पुक्खर एवं कम्मुणा णोवलिप्पति, कूर्मवत् गुप्तेन्द्रियः, विहग इव ण वसहीए आहारोवधिमित्तव्य पुच्छति, खग्गविसाणं व एवं एको चेव, रागदोसरहितो, भारंडवत् अप्रमत्तः, कुंजर० सूरभावो सौर्य सोडीयं चा, एवं परीमहादीहिं ण जिजति, सेसा जहासंभवं यच्चा, जच्चकणगं वा जातरूवे पुणो कम्मुणा ण लिप्पति, बहुसहा वसुंधरा एवं भगवं दव्यतो सचित्ते दुपदादिसु अचिने || वज्झचामरादिसु मीसए आसहस्थिमादिमु सदस्थिउत्तेसु, खित्तकालभावेन, बुध्यतो बोधिवान् , अनतरं नाणं लोगप्रमाणं ओधी, IN पवयस्स चत्तारि नाणाई जाव छउमत्थो, खाइयं देसणं अहक्खायं चरितं, सुचिभावो सोवचिका तेसि फलं परिणिव्वाणं तस्सMI " मग्गो नाणादी ३, झाणतरिया मुहुमकिरियं असंपचं, अरहति चंदणनमंसणाई, जिणा जिणकसाया, तत्र अभिप्रायः अध्यवसायः!, गाथा: दीप अनुक्रम [५०९ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [388]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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