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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [३], उद्देशक [२], नियुक्ति: [३१२...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १२०-१२६] (०१) ईयोध्ययन INV प्रत वृत्यक [१२०१२६] श्रीआचा- ढति, जिणकप्पिो उपफेस करेति, उप्फेसो नाम कुडियंडी सीसकरणं वा। अमितकूर० अमितकर्माणः, ते मणिता सय- रांग सूत्र मेव उल्लंभासि, सहसा वा छुमिज्जा, णो सुमणो, कह?-मरामि चेव, अहवा अहो मरियन्वर्ग, दुम्मणो हा मरियम्ब, कहं च चूर्णिः | उत्तरियब ?, उच्चावए तो जणवहंते उरस्स बल्ली चा णिद्वातति, राउले वा च्छुभषेति, णियाणं करेति, वहपरिणतो मरतो, हत्थेण ॥३५८॥ हस्थादीणि संघट्टेति मा आउक्काय विराहणा होहिति, दुबलभावो दुबलियं, ताहेति उयहितीरे ताव अच्छति जाव दर्ग सव्वं गलितं, उदउल्लससणिद्वाणं कालको विसेसो, आमज्जेज कहंचिगा दोसा, जं बल्लेण परिणामिते आमजेज, परे गिहत्था अण्ण| उत्थिया वा, परिगविय चुंफ करेंतो जाति, धर्म वा कहेंतो, संजमश्रायविराहणा, तेणपहे वा घेपेज्जा, जंघासंतारिमे कंठं, वप्पाती | पुष्वमणिता, अहवा वप्पो वट्टो बलयागारो, गंभीरोदयं या तलागं, केदारो वा, मट्ठा अपाणिता दरीपवयकुहरा भूमीए वा, जिणकप्पितो पाडिपहियाहस्थं जाइनु उत्तरति, थेरा रुक्खादीणिवि, जावसाणि वा मासजवसो वा, जहा गोधूमाण वामुसो, सग|डरह सच सविसयराया, परचकं अबराया, सेणा सराइगा, विस्वरूवा अणेगप्पगारा, हस्त्यश्वरथमनुष्येष, चारउत्ति या काउं | आगसेखा, कट्टिा सुमणो, एते णाचिताओ वादेणं दंडियं पड़प्पाएमि, उच्चावदं घातबहाए सावे देति, गामाणु• पाढिपहिया पुच्छेज्जा केवइए से गामे णगरे वा, केवतिएत्ति केवढे केत्तिया आसा हत्थी, ते चारिया अण्णो वा कोह पुरुछेन्ज, ण पुन्छे, न | कयरे वा, णो वागरेज्जा, एतं खलु तस्स भिक्खुस्स वा २ सामग्गितं । इति इरियाद्वितीयोदेशका समाप्तः॥ संबंधो रियाधिगारे, इहापि रिया एव, अंतरा वप्पाणि ते चेव, कूडागारं रहसंठितं, पासाता सोलविहण्णूमगिहा, भूमी|| गिहा भूमीपरा, रुक्खगिह जालीसंछन, पव्वयगिई दरी लेग वा, रुक्खं वा चेइयकर्ट वाणमंतरच्छादियगं, पेठं वापि मेरवं, धूभेवि दीप अनुक्रम [४५४४६० पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: प्रथम चूलिकाया: तृतीय-अध्ययनं "ईर्या", तृतीय-उद्देशक: आरब्ध: [370]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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