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आगम
भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [२], चूडा [१], अध्ययन [१], उद्देशक [२,३], नियुक्ति: [२९७...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १०-२१]
(०१)
ध्ययन
रांग सूत्र
चूर्णिः ॥३३॥
प्रत वृत्यक [१०-२१]
यतिता, अद्धमासितं वा उपवासं काउं अयामसाए वा करेति भत्तं, मासितं पुन्निमाए, २३४५ छम्मासिए -'अपणमत्तए उहसि-1 सिरतादिसु ऋतौ घृतो गुलो गोरसा साली य पउरा अहवा पदोसा, हेमंतसिसिरगिम्हे सत्तुगमादि, एवं जा मि उड्डुमि दिअति, उडुसंधी दोहं उद्णं संधी, परियट्टे हेमंतो वसंतो अहवा से उधु समता, उक्खाओ खलिया, कुंभी कुंभप्पमाणा, कलसी गिहकुंभे भरिजति, कलोवादी पच्छीपडिगमादी, सनिधी गोरसो, संणिचओ घतगुला, एत्थवि तच्चेव पगारा, अपुरिसंतरकडादी ण कप्यति, कृतो? विसुद्धा णो भतपाणा भंगा ४, दोस विसुद्धेसु गहर्ण, सेसेसु पडिसेहो, उग्गा जे सामिणो दंडधरा आसी, भोजा गुरुत्थाणीया, राईणा राइणो, खत्तिया इक्खागहरियसपसिद्धा, एसिता दरिसणा, वेसिता रंगोचजीविणो, गंडगा गामतित्ति-11 वाहगा, कोटगा हरगाए कोट्टकीत्यर्थः, गामरक्खगा गामाउन्तगा, बोक्सा लिताणंतिका, एवमादि अ, दगुंछिता चंमारादी, तेसु | फासुसगाणवियगडणं । सनबातो-गोडीमनं, पिंडाणिगरो-पितिपिंडो, ईदमहे ईदो, खंदो महासेगो, रुदो रुदमेव, मुगुंडोबलदेबो,। जागा णागवलियाए, जक्वा आणंदपुरे सिद्धा चेव, मूले जहा देवणिम्मिते, चेइयं वाणमंतरं, रुक्खा पत्चब्बोवगाणि कजंति, गिरि उजंताई, दरी उपयअंधारियासु, कप्पंजणगा दहणागदुमो, णदीए भमतीए, सरे जहा भट्टचरणे, अन्ने य सागारे, अन्नतरेसु NI वा विरूवपर० एगाओ धक्खाओ तहेव अपुरिसंतरकर्ड णो पडिगाहिजा जाव अह पुण जाणे आ दिणं जं तेसिं दायब्बं अह । तत्थ ण मुंजेजा, भुज पालनाभ्यवहारयोः, पभू वा पभुसंदिट्ठो वा पभू गाहाबई आयरियगिलाणादीणं अलंभे वा सो देजा जाव | पडिगाहेजा। इदाणिं सित्त-परतो अद्धजोपणं भिक्खाचरियं गम्मति गाम वा रणं वा चउदिसिं, जस्थ संखडी तस्थ अबराएवि ॥ जई जाइ, सा संखडी प्रतिज्ञातुं न कप्पति । से भिक्खू वा भिक्खुणी वा पाईणं पुरिमदिमार बारेंतेवि जति तत्व संखडी
दीप अनुक्रम [३४४३५५]
॥३३॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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