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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [३], नियुक्ति: २८४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-१४] (०१) श्रीआचा- एण वा कोइ, दंसमसगा य जलोयाओ एवमादि उबसग्गे अहियासए, सया समिते सया नाम निचकालं, फुसंतीति फासा दशाब रांग सूत्र-IN D| विरूवरूवाइंति एपाणि य अन्नाणि य अणुलोमाणि पडिलोमाणि य, अवि दुचरलाढमचारी (८२) अवि इति अर्णतरे. उप-ID प्यासन ॥३१८॥ सग्गबहुचा दुकरं परिजतीति दुचरं, लाढ इति जाणवतो, सो दुविहो-वजा भोम्मा य, सो तेसु भगवं ताव तेसु पन्तं सेज। सेवित्था, आसणाईपि चेव पंताणि, पंताओ णाम सुन्नागारादीओ, सडियपडियभग्गलग्गाओ, आसणाणि पंताणि पंसुकरीससकरालीगादीउबचित्राणि, कट्ठासणा वा णिञ्चलाणि फलहपट्टयादीहि, एरिसेसु सयणासणेसु वसमाणस्स लाढेसु (८३) वे | उबसग्गा बहवे जाणवता आर्गम लाढा, त एव दुविहा वजं सुझ० उपसग्मा चहवे पडिलोमा य अकोसवहादि, जाणवताउव. सग्गा जणवते भवा जाणपदा, यदुक्तं भवति-अणगरजगवो पार्य सो विसओ, ण तत्थ नगरादीणि संति, लूमगेहिं सो कट्ट| मुट्ठिप्पहारादीएहि अणेगेहि य लूसंति, एगे आहु-दंतेहिं खायंतेत्ति, किंच-अहा लूहदेसिए भने, तद्देसे पाएण रुक्खाहारा तैल घृतविवर्जिता रूक्षा, भक्तदेस इति बत्तव्वे बंधाणुलोमओ उपकमकरणं, गेह गोवांगरससीरहिणि, रूक्षं गोवालहलवाहादीणं सीतकरो, |आमतेऊणं अंबिलेण अलोणेण एए दिअंति माण्हे लुक्खएहि, माससहाएहि तं पिणाति प्रकाम, ण तत्थ तिला संति, ण गावीतो ||" बहुगीतो, कप्पासो वा, तणपाउरणातो ते, परुक्खाहारत्ता अतीव कोहणा, रुस्सिता अकोसादी य उबसग्गे फरेंति, कुक्करा तस्थ |हिंसिसु णिवतिसु सस्थ बहवे कुकुरादी हिंसंतीति हिसिसु णिवतिति सचओ तं निविसयंति, भट्टारगस्स थ नत्थि दंडउत्ति जेण ते पुण पवारेहिति, ते एवं णिब्भया भुक्खिया णिवतंता अपि अग्रणे निवारेंति (८४) जति सहसा सो कोति एगो निवारेति | लूमणगा, जं मणितं होति-भक्खणगा, भसंतीति भसमाणा, जेवि नाम ण क्खायति तेवि ते तुकारेंति आहंसु आइंसुचि || | ॥३१॥ प्रत वृत्यक [२२६गाथा १-१४] NA दीप अनुक्रम [३०४ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [330]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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