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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [९], उद्देशक [१], नियुक्ति: [२७५-२८४], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक २२६/गाथा: १-२३] (०१) देवध्यादि SHRSHDSANIPATRA प्रत श्रीआचा-ID| दिवेण, पिहिस्सामि, न तस्स जहा मम एतं सीतत्ताणं हिरिपडिच्छायणं वा भविस्सति, से पारते आवकहाए स इति सो| रांग सूत्र- भगवं वद्धमाणो, पारं गच्छतीति पारगो, सीतपरीसहाणं वत्थमंतरेणावि, जं पुण तं वत्थं खंधे ठितं धरितं वा तं अणुम्मियं चूर्णिः W तस्स अणु पच्छाभावे अनेहिवि तित्थगरेहिं तहा धरियं तं अणुधम्मियमेव एतं, जं भणित-गताणुगतं, अहवा तित्थगराणं अयं ॥२९ ॥ | अणुकालधम्मो-से वेमि जे य अतीता जे यपडपष्णा जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतोजे य पब्बड्या जे य पब्वयंति जे य पबहस्संति सब्जे सोवहिगो धम्मो देसियवनिकटु तित्थचधाए एसा अणुधम्मियति एग देवसमादाय पबईसु वा पथ्यइंति वा पचह संति वा, भणियं च-गरीयस्त्वात् सचेलस्स, धर्मस्थान्यैः तथागतः। शिभ्यसंप्रत्ययाच्चैव, वखं दधे न लज्जया॥१।। स हि भगवां दिग्वेहिं गोसीसाइएहिं चंदणेहिं चुन्नेहि य वासेहि य पु'फेहि य वासितदेहोऽपि णिक्खमणाभिसेगेण य अमिसिनो विसेसेणं ईदेहि | चंदणादिगंधेहिं वा वासितो, जो तस्स पब्बइयस्सविसओ चत्तारि साधिगे मासे तहावत्थो, ण जाति, आगममग्गसिरा आरद्ध चत्तारि मासा सो दिव्यो गंधो न फिडिओ, जओ से सुरभिगंधेणं भमरा मधुकरा य पाणजातीया बहवो आगमेंति दूराओपि, पुष्फितेवि लोहकंदादिवणसंडे चहत्ता, दिग्वेहिं गंधेहिं आगरिसिता, तत्स देहमागम्म आरुज्झ कायं विंधति, कायो णाम सरीरं, तं आरु-| भित्ता विहरींसु, ततो जतो जतो भट्टारतो जाति ततो ततो विलग्गा चेव केति विहरंति, केई मग्गो गमेंता मग्गओ अण्णेति. जहा पुण किंचिवि ण रोएंति ततो आरुसियाणं तत्व हिंसिंग अञ्चत्थं रुस्सिताणं आरुस्सिताणं, तत्थेति तत्थ सरीरे, हिंसिंसु णहेहि य रस्सयंति, वसन्तकालविरियं किंचि रक्तो व सुमणेहि भवति, ततो विलग्गिउं तं पिचित्ता आरु.सत्ताणं तत्थ हिंसिंसु, | महंगादीवि पाणजातीओ आरुभ कार्य विहरंति, जाव गाते वत्थे या चंदणादीविलेवणाणं चुनादीणं चकेति अवयवोवचितं ताव वृत्यंक [२२६गाथा १-२३] दीप ॥२९९॥ अनुक्रम [२६५21 पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [311]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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