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________________ आगम (०१) प्रत वृत्यक [१९७ २०१] दीप अनुक्रम [२१० २१४] श्री आचारांग सूत्रचूर्णिः ॥२४६॥ भाग-1 “आचार” - अंगसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [ ८ ], उद्देशक [१], निर्युक्तिः [२५३-२७५], [वृत्ति अनुसार सूत्रांक १९७-२०१] 'एकोऽहं न में कचित्, नाहमन्यस्य कस्यचित् । इंगिणिमरणं अणुपविसेत्ता लाभं न लाति, अह स्वयं अनंतरपायोवगमकार्येव जो वयं चरिउं, 'अट्टमे अणुपुवाविहारीणं' कंठवं, णामणिष्फण्णे विमोक्खाययणं, सो छनिहो णामं ठविओ मोक्खो दबमोक्लो य गाहा || २५७|| दद्दविमोक्खो णिगलातिएहिं० गाहा || २५९ ॥ दव्वस्य दव्वाणं, तत्थ दव्यस्स बद्धस्स गोण| पडिनिमस्स वा बहूणं वा दव्याणं, जो जेण दव्वेण मुच्चति, बद्धो सचितेग अचितेण वा दब्वेहिं सचितादीहिं बहुणिगले हिंतो, बहूहिं निगलेहिं गलसंकलहत्थं दुगादीहिंनो या, खेतविमोक्खो चारगाओ विमुचति, जो वा खित्तं दाऊणं विमोएति, अहाकष्पगं सव्वता वा, काले जो जहिं काले मुञ्चति, दुब्भिक्ालकाला ओ वा मुको, मारिजिङकायो वा कत्तिमाइएस अमाघाते घुट्टे मुचति, दुविहो उ भावमोक्यो ।। २५९ ।। देशविमोक्खो दुविदो-सावगाणं साहूण य, सावगा दुविद्या-दंसणसावगा य गहियाणुब्वया य, दंसणसावगाणं पढिमिल्दुम कसायविमोक्खो, सामिग्गहाण तु अट्टहं कसायाणं विमोक्स्खो, साहूणं केसिंचि वारसह कसायाणं विमोक्खो, केसिंचि 'दो दो०' एवं खवगसेढी उवसामगोदी य येऊगं जो जनिए िकम्मेदिं विमोक्खो, सबचिमुका सिद्धा, बद्धस्स मोक्खो भवति तेण बंधो भंगियो, केप विषदो कर्हि वा १, तेण पोग्गलपातेण सह संजोगा, भवियं च-सव्वआतप्पदेसेहिं अनंताणंतष्णदेना, कहं बज्झति ?, 'कहणं भंते! जीवा अट्ठ कम्मपगडीओ बंधंति, गो० अत्तस्स रेणु उवलग्गते जहा अंगे, अहबा रागेण य गाहा ॥ २६० ॥ तथा सकषायत्याज्जीवः, अहंवा बद्धनिधनिकालिएत्ति, एवं बंधो भणितो, | इदाणिं मोक्खे, बंधवियोगो मोक्खो भवति, जीवरस अत्तजणिते हिं गाहा ।। २६२ ॥ कंठ्या, भणितो भावविमुक्खो, भावमोक्खस्स | उवाओ भत्तपरिण्णा इंगिणि० गाहा ॥ २६२ ॥ चरिममरणंति-चरिमभवसिद्धियमरणस्य संसारविमोक्खो भवति, तं पुष्प एकेकं मोक्षनिक्षेपाः [258] ॥२४६॥ पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र - [०१], अंग सूत्र -[०१] "आचार" जिनदासगणि विहिता चूर्णि :
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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