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________________ आगम भाग-1 "आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [५], उद्देशक [५], नियुक्ति: [२४९...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक १६०-१६५] (०१) श्रीआचारांग सूत्र चूर्णिः ॥१९३॥ प्रत वृत्यक [१६०१६५] FASE माणस्स, जं भणितं असद्दहमाणस्स, वतियस्सवि संविग्गा एतेत्ति णचावि जया तस्स पडिमियब्वे उवेहं करेंति तदा असमिया | उपेक्षादि भवति, चउत्थो असमिओ चेव, तत्थ जो सो हरतो धम्मो आयरिओ तस्सिमो वा अत्तपारो (पण्णो) उवेहमाणो अणुवेहमाणो, जी | भणितं-अपरिखुज्झमाणो, एवं उबेह, एवं एयस्स, एवं बुज्झ समियाएति, अरूसंतो-अफस भणतं टंकणदिलुतेण ताव माहेति जाव परिचाति, तदा तस्स ठाणस्स तं भवति णयणं, भणंति 'जट्ट चल्ल'त्ति, अगिलाए काले काले य पढमबितियादिपरीसहेहि अगि-11 लायमाणस्स स एव अत्थो पुणो पुणो उब्बेहतस्स (तत्थ तत्थ) संधी झोसितो भवति तत्थ तत्थेति वीप्सा, तत्थ तत्थ नाणं| तरे दंसण० चरित्तरे लिंगंतरे वा संधाणं संधी दरिसणसंधिव, अयं 'जुपी प्रीतिसेवनयोः' अहंबा, अहवा पदपादसिलोगगाहा वृत्तउद्देसअज्झयणसुयखंघअंगसंधिरिति, जुसितं जे भणितं आसेवितं, सदहिता पत्तीता भवंति, अथवा पत्रमिति संधितास्व, एवं | सद्दहमाणस्स 'से उडियस्स ठियस्स गति समणुण्ण' सम्म उड्डाणेणं उद्वितरस गुरुकुले वसंतोगति समणुपस्सह, किं गतिं गतो, जहा कोयि रायसेवगो रायाणं आराहित्ता पट्टबंध पत्तो, तत्थ लोए बत्तारो भवंति-पेह अमुगो के गनि गओ?, एवं अमितरइस्सरियत्तणेण महाविजाए वा, इह हि आयरियकुलावासे वसंतो 'णीयं सेजं गतिं ठाणं णियमा(णीयं च आसपाणि या' एवं वट्टमाणो 'पूजा य से पसीयंति, संबुद्धा पुब्वसंधुता ।' सो अचिरयकालेण आयरियपदं पावति पदबंधठाणीयं, अतो बुच्चति-उद्दितस्स द्वितस्स, अनाओवि रिद्धिो पावंति, सिद्धिगतिं देवलोग वा, एवं पावित्चा पंचविहे आयारे परिकमियब्वं, एत्थवि बाल| भावे' बाला, जं भणितं मूढा संकिया, यश्च संकियभावे य अप्पाणं णो दरिसिजा, जोवि अण्णो बालभावो, तंजहा-भारहरामायणादि तेहिं पुवं भाषियपुब्यो कुप्पारयणेसु वा वइसेसियवुद्धबयणमादिकविलादिएमु अविरतअवतअसंजयाण वतादिसु दीप अनुक्रम [१७३१७८] र पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.....आगमसूत्र-[०१], अंग सूत्र-[१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि: [205]
SR No.035051
Book TitleSachoornik Aagam Suttaani 01 Aachaar Churni Aagam 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherParam Anand Shwe Mu Pu Jain Sangh Paldi Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages399
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size30 MB
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