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आगम
भाग-1 “आचार" - अंगसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) श्रुतस्कंध [१], अध्ययन [३], उद्देशक [3], नियुक्ति: [२१४...], [वृत्ति-अनुसार सूत्रांक ११५-१२०]
(०१)
भाव:
S
प्रत वृत्यक [११५१२०]
श्रीश्राचा
|| सिरातिच्छेदो भेदो कंटगसूयीसलग्गातिएहिं गिहाविएहिं ण डझति कडगअग्गिणा वा एवमादि, ण हम्मति कसादिएईि, भणियं |D छिदायरोग सूत्रच-"यस्य हस्तौ च पादौ च, जिह्वाग्रं च सुसंयतम् । इंद्रियाणि च गुप्तानि, राजा तस्स करोति किम् ॥१॥"'कंचणं'ति केणड
चूर्णिः Hकयाइबि,'सव्वलोगो'त्ति खेचं भणित, भणियं च-"सणो यहूणि इत्थछेयणाणि जाव पिपविप्पयोगे पाविस्सइ, निब्याणे या ॥१२१॥
| असरीरत्तं लभित्ता से ण छिअति" इति, एवं पड्डप्पण्णेसु सदातिसु विसएसु दोहिंवि अंतेहिं अदिस्समाणे, पडुप्पण्णेसु विसएसु
| गुणो भणितो, अतिकतेमु स्वादिसु विसएसु निरोहो कायव्योति भण्णइ 'अवरेण पुर्व ण सरंति एगे' णस्थि एयस्म परति || KA अपरो, को सो ?, संजमो तयो वा, तेण अपरेण संजमेण तवसा वा गच्छिना ण पुन्यविसथसरणं करेति, भणियं च-"जो पुत्र
| रतपुथ्वकीलियाई सरेञ्जा" जहा सुहसंजोगो तवासी, तं अणिटुं विसयसंपयोगपि ण सरति, जं भणितं-उधिजति णो णाम, राग| होसविरहिए, एवं अमागएसुपि दिव्यमाणुस्सविसयसंपओगे नामिलमति, जहा पुब्वभवे वासुदेववंभदत्ता, दुक्खाणि विसनचव| णगम्भवासादि तेसि हेतुं न सरति, जं भणित-तेसु न विरजति, अहवावि सो पुच्छति अवरेण पुर्व' अबराओ जम्माओ पृथ्वज-1) |म्मणं ण सरति, परे कुतिस्थिया किमस्सऽतीत ? केवतिओ से कालो अतीतो ? केवइओ अगागतो? केवइयाणि मरीराणि वा अतीताणि? केवइयाई वा अणागताई?, भण्णति-किं एत्थ चि अति असवण्णू ण याणति, लोगुत्तरा भासंति-'एगे इह माणवातु' एगे।
णाम ण सव्वे, केवलिणो, जे एगे केवलनाणे ठिता रागदोसमुक्का वा एगे, किं भासंति ?,'जमस्सऽतीतं' अणातिनिहणत्ता जीवस्स | 10 | जावइओ कालो अतीतो तावतियो आगमेस्सोवि, तहा सरीराणि जम्माणि दुक्खं संपयोगो अभब्वाणं, भवाण केसिंचि, केह
| पति-'किह से अतीतं किह आगमिस्सं' ण सरंति-ण याणंति अपणोऽबि, किन्नु अण्णेसिं ?, एगे कुतिस्थिया किमिति || ॥१२॥
दीप अनुक्रम [१२५१३३]
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पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधिता मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता......आगमसूत्र-[१], अंग सूत्र-[०१] "आचार' जिनदासगणि विहिता चूर्णि:
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