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________________ आगम (४३) प्रत सूत्रांक ||१६ -३५|| दीप अनुक्रम [७२८ -७४७] उत्तराध्य. बृहद्वृत्तिः ॥४७४॥ [भाग-३६] “उत्तराध्ययनानि ” - मूलसूत्र - ४ ( मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः) अध्ययनं [२०], मूलं [--] / गाथा ||१६-३५|| निर्युक्तिः [४२२R...] मंगं च पीडई। इंदासणिसमा घोरा, वेयणा परमदारुणा ॥ २१ ॥ उबडिया मे आयरिया, विज्ञामंतचिगिच्छगा। अबीआ सत्थकुसला, मंतमूलविसारया ॥ २२ ॥ ते मे तिमिच्छं कुव्वंति चाउपायं जहाहियं न य मे दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया || २३ || पिया मे सव्वसारंपि, दिजाहि मम कारणा न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ||२४|| माया (वि) मे महाराय !, पुत्तसोगदुहदिया। न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाहया || २५ || भायरा मे महाराय !, सगा जिट्टकणिहगा । न य दुक्खा विमोयंति, एसा मज्झ अणाया ॥ २६ ॥ भइणीओ मे महाराय !, सगा जिद्वकणिङगा । न य दुक्खा विमोयंति, | एसा मज्झ अणाया || २७ ॥ भारिया मे महाराय !, अणुरन्तमणुब्वया । अंसुपुन्नेहिं नयणेहिं, उरं मे परिसिंचाई ॥ २८ ॥ अन्नं पाणं च पहाणं च, गंधमल्लविलेवणं । मए नायमनायं वा, सा बाला नोवभुंजई ॥ २९ ॥ खर्णपि मे महाराय !, पासाओवि न फिटई । न य दुक्खा विमोएइ, एसा मज्झ अणाया ॥ ३० ॥ तओऽह एवमाहंसु, दुक्खमा हु पुणो पुणो । वेयणा अणुहविडं जे संसारंमि अनंतए ॥ ३१ ॥ सयं च जह मुंचिज्ञा, वेयणा विउला इओ । तो दंतो निरारंभो, पव्वइए अनगारियं ॥ ३२ ॥ एवं च चिंतदत्ताणं, पासुतो मि नराहिवा। परियसंती राईए, वेषणा मे खयं गया ॥ ३३ ॥ तओ कल्ले पभार्थमि, आउच्छिता ण बंधवे । खंतो दंतो निरारंभो, पब्बईओ अगगारियं ॥ ३४ ॥ तोऽहं नाहो जाओ, अप्पणो अ परस्स य । सव्वेसिं चैव भूयाणं, तसाणं धावरण य ॥ ३५ ॥ For Parana Privat महानिर्य न्थीया० २० ~449~ ॥४७४॥ anotary.org पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [४३] मूलसूत्र [४] उत्तराध्ययनानि मूलं एवं शान्तिसूरिविरचिता वृत्तिः
SR No.035036
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 36 Uttaradhyayan Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages482
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size99 MB
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