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आगम
(४३)
प्रत
सूत्रांक
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दीप
अनुक्रम
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उत्तराध्य.
बृहद्वृत्तिः
॥ ९ ॥
[भाग-३५] “उत्तराध्ययनानि ” - मूलसूत्र - ४ ( मूलं+निर्युक्तिः+वृत्तिः)
अध्ययनं [-],
मूलं [ - ],
निर्युक्तिः [१३-१७]
व्याख्या - निगदसिद्धाः | नवरमाभिरध्ययन विशेषनामान्युक्तानि, एतन्निरुक्त्यादि च नामनिष्पन्न निक्षेप प्रस्ताव एवाभिधास्यते ॥ अधिकारानाह
पढमे विणओ बीए परिसहा दुलहंगया तइए । अहिगारो य चउत्थे होइ पमायप्पमापत्ति ॥ १८ ॥ | मरणविभत्ती पुण पंचमम्मि विजा चरणं च छटुअज्झयणे । रसगेहिपरिचाओ सत्तमे अट्ठमि अलोभे ॥ १९ ॥ निक्कंपया य नवमे दसमे अणुसासणोवमा भणिया । इक्कारसमे पूया तवरिद्धी चेव बारसमे ॥ २० ॥ तेरसमे अ नियाणं अनियाणं चेव होइ चउदसमे । भिक्खुगुणा पन्नरसे सोलसमे बंभगुत्तीओ ॥२१॥ पावाण वज्जणा खलु सत्तरसे भोगिड्डिवजहणद्वारे । एगुणि अप्परिकम्मे अणाहया चेव वीसइमे ॥२२॥ चरिया य विचित्ता इक्कवीसि बावीसिमे थिरं चरणं । तेवीसइमे धम्मो चउवीसइमे य समिइओ ॥ २३ ॥ बंभगुण पन्नवीसे सामायारी य होइ छबीसे । सत्तावीसे असढया अट्ठावीसे य मुक्खगई ॥ २४ ॥ एगुणतीस आवस्सगप्पमाओ तवो अ होइ तीसइमे । चरणं च इकतीसे बत्तीसि पमायठाणाई ॥२५॥
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अध्ययनम्
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॥ ९ ॥
पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [ ४३] मूलसूत्र[४] उत्तराध्ययनानि मूलं एवं शान्तिसूरिविरचिता वृत्तिः