________________
आगम (४२)
[भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:)
चूलिका [१], मूलं [१...], / गाथा ||१-८||, नियुक्ति: [३६७...], भाष्यं [६२...]
दशवैका. हारि-वृत्तिः
प्रत सूत्रांक ||१८||
*5453454643
॥२७४॥
जया य चयई धम्म, अणज्जो भोगकारणा । से तत्थ मुच्छिए बाले, आयई नावबु
१रतिवाज्झइ ॥१॥ जया ओहाविओ होइ, इंदो वा पडिओ छमं । सव्वधम्मपरिब्भट्ठो,
क्यचूला. स पच्छा परितप्पइ ॥२॥ जया अ वंदिमो होइ, पच्छा होइ अवंदिमो । देवया व चुआ ठाणा, स पच्छा परितप्पइ ॥३॥ जया अपूइमो होइ, पच्छा होइ अपूइमो। राया व रजपब्भट्ठो, स पच्छा परितप्पइ ॥४॥ जया अ माणिमो होइ, पच्छा होइ अमाणिमो । सिद्धि व्व कब्बडे छुढो, स पच्छा परितप्पइ ॥ ५॥ जया अ थेरओ होइ, समइकंतजुव्वणो । मच्छु व्व गलं गिलित्ता, स पच्छा परितप्पड़ ॥६॥ जया अ कुकुडुंबस्स, कुतत्तीहिं विहम्मइ । हत्थी व बंधणे बद्धो, स पच्छा परितप्पइ ॥७॥ पुत्तदारपरीकिण्णो, मोहसंताणसंतओ। पंकोसन्नो जहा नागो,
स पच्छा परितप्पड़ ॥ ८॥ यदा चैवमप्यष्टादशसु ग्यावर्त्तनकारणेषु सत्खपि 'जहाति' त्यजति 'धर्म' चारित्रलक्षणम् 'अनार्य' इत्य-18
--5405581%AX
दीप अनुक्रम [५०७-५१४]
WI॥२४॥
पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४] मूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति:
~559~