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________________ आगम [भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) चूलिका [१], मूलं [१], / गाथा ||-II, नियुक्ति: [३६७...], भाष्यं [६२...] (४२) दशवैका हारि-वृत्तिः ॥ २७१॥ १रतिवाक्पचूला प्रत सत्राका रिआ गिहीणं कामभोगा २, भुजो अ साइबहुला मणुस्सा ३, इमे अ मे दुक्खे न चिरकालोवढाई भविस्सई ४, ओमजणपुरकारे ५, वंतस्स य पडिआयणं ६, अहरगइवासोवसंपया ७, दुल्लहे खलु भो! गिहीणं धम्मे गिहवासमज्झे वसंताणं ८, आयके से वहाय होइ ९, संकप्पे से वहाय होइ १०, सोवक्केसे गिहवासे निरुवक्केसे परिआए ११, बंधे गिहवासे मुक्खे परिआए १२, सावजे गिहवासे अणवजे परिआए १३, बहुसाहारणा गिहीणं कामभोगा १४, पत्तेअं पुण्णपावं १५, अणिञ्चे खलु भो! मणुआण जीविए कुसग्गजलबिंदुचंचले १६, बहुं च खलु भो! पावं कर्म पगडं १७, पावाणं च खलु भो! कडाणं कम्माणं पुटिव दुच्चिन्नाणं दुप्पडिकंताणं वेइत्ता मुक्खो, नत्थि अवेइत्ता, तवसा वा झोसइत्ता १८ । अट्ठारसमं पयं भवइ । भवइ अ इत्थ सिलोगो'इह खलु भोः प्रबजितेन' इहेति जिनप्रवचने खलुशब्दोऽवधारणे स च भिन्नक्रम इति दर्शयिष्यामः, भो| दीप 22% % अनुक्रम [५०६] २७१॥ पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४] मूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति: ~553~
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
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