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________________ आगम (४२) प्रत सूत्रांक ||..|| दीप अनुक्रम [४८४..] [भाग-३४] “दशवैकालिक” - मूलसूत्र - ३ ( मूलं + निर्युक्तिः+ भाष्य |+वृत्ति:) अध्ययनं [१०], उद्देशक [-], मूलं [४...] / गाथा ||७...|| निर्युक्ति: [३५७], भाष्यं [६२...] दशवैका ० अष्कायादीन् यः पिबति, तत्त्वतो विनाऽऽलम्बनेन, कथं त्वसौ भिक्षुः नैव भावभिक्षुरिति गाथार्थः ॥ उक्त हारि-वृत्तिः + उपनयः, साम्प्रतं निगमनमाह तम्हा जे अक्षयणे भिक्खुगुणा तेहिं होइ सो भिक्खू । तेहि अ सउत्तरगुणेहि होइ सो भाविअतरो उ ॥ ३५८ ॥ ॥ २६४ ॥ यस्मादेतदेवं यदनन्तरमुक्तं तस्माद् येऽध्ययने प्रस्तुत एव 'भिक्षुगुणा' मूलगुणरूपा उक्तास्तैः करणभूतैः सद्भिर्भवत्यसौ भिक्षु, तै 'सोत्तरगुणैः' पिण्डविशुद्धयागुत्तरगुणसमन्वितैर्भवत्यसौ 'भाविततरः' चारित्रधर्मे तु प्रसन्नतर इति गाथार्थः ॥ उक्तो नामनिष्पन्नो निक्षेपः, साम्प्रतं सूत्रालापकनिष्पन्नस्यावसर इत्यादिचर्चः पूर्ववत्तावद्यावत्सूत्रानुगमेऽस्खलितादिगुणोपेतं सूत्रमुचारणीयं तचेदम् निक्खम्ममाणा अबुद्धवयणे, निच्चं चित्तसमाहिओ हविज्जा । इत्थीण वसं न आवि गच्छे, वंतं नो पडिआयइ जे स भिक्खू ॥ १ ॥ पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए । अगणिसत्थं जहा सुनिसिअं, तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ॥ २ ॥ अनिलेण न वीए न वीयावए, हरियाणि न छिंदे न छिंदावए । बीआणि सया विवज्जयंतो, सच्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ॥ ३ ॥ वहणं त १० सभि क्ष्वध्य० ~539~ ॥ २६४ ॥ Far P&Personal Use City royang पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र [४२] मूलसूत्र [३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्तिः
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
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