SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 327
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४२) [भाग-३४] “दशवैकालिक”- मूलसूत्र-३ (मूलं+नियुक्ति:+|भाष्य+वृत्ति:) अध्ययनं [४], उद्देशक [-1, मूलं [१५...] / गाथा ||१४-२५|| नियुक्ति: [२३२...], भाष्यं [६०...] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र[४] मूलसूत्रा३] दशवैकालिक मूलं एवं हरिभद्रसूरिविरचिता वृत्ति: दशवैका ४ षड्जीवनिकाध्य जीवस्वरूप प्रत हारि-वृत्ति ॥ १५८॥ सूत्रांक ||१४ -२५|| दिए भोए, जे दिव्वे जे अ माणुसे ॥ १६ ॥ जया निविदए भोगे, जे दिब्वे जे अ माणुसे । तया चयइ संजोगं, सभितरबाहिरं ॥ १७॥ जया चयइ संजोगं, सभितरबाहिरं । तया मुंडे भवित्ता णं, पव्वइए अणगारिअं ॥ १८॥ जया मुंडे भवित्ता णं, पब्वइए अणगारिअं । तया संवरमुक्टुिं, धम्म फासे अणुत्तरं ॥ १९ ॥ जया संवरमुक्टुिं, धम्म फासे अणुत्तरं । तया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसंकडं ॥ २० ॥ जया धुणइ कम्मरयं, अबोहिकलुसंकडं । तया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ ॥ २१ ॥ जया सव्वत्तगं नाणं, दंसणं चाभिगच्छइ । तया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ २२ ॥ जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली। तया जोगे निलंभित्ता, सेलेसिं पडिवजइ ॥ २३ ॥ जया जोगे निलंभित्ता, सेलेसि पडिवजइ। तया कम्मं खवित्ता णं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ ॥२४॥ जया कम्मं खवित्ता णं, सिद्धिं गच्छइ नीरओ । तया लोगमत्थयत्थो, सिद्धो हवइ सासओ ॥२५॥ दीप अनुक्रम [६०-७१] ॥१५८॥ ~327
SR No.035034
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 34 Dashvaikalik Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages590
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size139 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy