SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 206
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम (४१/१) [भाग-३२] “ओघनियुक्ति”- मूलसूत्र-२/१ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्ति:) मूलं [३८८] » “नियुक्ति: [२३८...] + भाष्यं [१३३] + प्रक्षेपं [१६... . पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४१/१] मूलसूत्र-[२/१ ओघनियुक्ति मूलं एवं द्रोणाचार्य-विरचिता वृत्ति: प्रत 4% गाथांक नि/भा/प्र ||१३३|| * अलसं घसिरं सुविरं खमगं कोहमाणमायलोहिल्लं । कोहलपडिबद्धं वेयावचं न कारिजा ॥ १३३ ॥(भा) ___ अलसो आलसितो सो वेयावच्चं न कारेयबो, जदि कारवे असमाचारी, सो आलस्सेण ताव अच्छइ जाव फिडिओ देसकालो, ताहे पच्छा सहयाणि जं किंचि देति तेण आयरिआईणं विराहणा, अहवा सो अइप्पए वच्चइ कर्म निषाहि होउत्ति, ताहे तत्थ अकाले वच्चंतस्स तस्स ते चैव दोसा, अथवा ताणि धम्मसडियआ ओसकणदोसे उस्सकणदोसे वा करेजा ठवियगदोसा वा, अहवा आयरियाणं निमित्तं पए वा उस्सूरे उवक्खडेजा, एते एवमाइया अलसे दोसा। घसिरो बहुभक्खगो, सोवि ण पट्टवेयधो, सो पढमं चेव अप्पणो अडाए हिंडइ पज्जतं, जाव सो अप्पणो पजत्तं हिंडइ ताव फिडिआ वेला, अहवा तत्थेव पढम वच्चइ पच्छा तत्थ य ण चेव वेला होइ, ते चेवोस्सकाणादिआ दोसा, अहवा| तत्थ सहकुले पभूयं गेण्हइ ताहे उग्गमदोसा न सुज्झति । सुविरो ताव सुबइ जाव फिडिआ भिक्खावेला, अहवा पढमं तत्थ गंतुं अवेलाए पच्छा सुयइ ते चेव दोसा । खमओ जइ अप्पणो हिंडइ ताहे आयरिआ परितावणादि पार्वति, अह खमओ आयरिआणं गेण्हइ ततो अपणो परितावणादि पावइ । कोहिलो पुषलाभाओ फिडितो सकोहिओ संतो भणइ-अम्हे अण्णतो लभामः, तंपि तुझपच्चएण न गेण्हामो, अहवा घेवं लब्भइ तत्थ भंडइ, अहवा ऊर्ण पाणेण वा | तेमणेण वा तत्थवि रूसति । माणिओ जइ न अब्भुडिजति तो पुणो न एइ, को विसेसो सावगाणति ? । माइल्लो भद्दगं भद्दगं अप्पसागरि भोच्चा पंतं आणेति लोभिल्लो जत्तिलभति तं सर्व गेण्हति, एसणं वा लोभेणं पेल्लेजा कोऊहलिलो जत्थ नडादि पेच्छइ तत्थ पेच्छंतो अच्छइ । पडिबद्धो जो सुत्तत्थेसु अल्लिओ तो सो ताव अच्छा जाव कालवेला जाया दीप अनुक्रम [३८८] SSACROSRO ~206~
SR No.035032
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 32 Oghniryukti Mool evam Vrutti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages472
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_oghniryukti
File Size99 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy