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आगम (४०)
[भाग-३१] "आवश्यक"- मूलसूत्र-१/४ (मूलं+नियुक्ति:+वृत्तिः )
अध्ययनं [१], मूलं [सू.] / [गाथा-], नियुक्ति : [१५४७] भाष्यं [२३६...],
आवश्यक हारिभद्रीया
प्रत
सूत्रांक
॥७९८॥
| पुव्वं ठंतिय गुरुणो' गाहा प्रकटार्था ॥१५४४ ॥ 'चउरंगुल'त्ति चत्तारि अंगुलाणि पायाणं अंतरं करेयवं, मुहपोतिं|४| ५कायोत्स'उजुएत्ति दाहिणहत्येण मुहपोत्तिया घेत्तवा, डब्बहत्थे रयहरणं कायवं, एतेण विहिणा 'वोसठ्ठचत्तदेहो त्ति पूर्ववत
गोध्य० काउस्सग करिजाहित्ति गाथार्थः ॥ १५४५ ॥ गतं विधिद्वारम् , अधुना दोषावसरः, तत्रेदं गाथाद्वयं-'घोडगे'त्यादि
कायोत्सआसुध विसमपार्थ गायं ठावितु ठाइ उस्सग्गे । कंपइ काउस्सग्गे लयन्व खरपवणसंगणं ॥१॥ खंभे वा कुडे या अवठंभिय ठाइ
|र्गदोषाः काउसम्गं तु । माले य उत्तमंग अवठंभिय ठाइ उस्सगं ॥२॥ सबरी वसणविरहिया करेहि सागारियं जह ठवेइ । ठइऊण गुज्झदेसं करेहि तो कुणइ उस्सग ॥ ३॥ अवणाभिउत्तमंगो काउस्सर्ग जहा कुलवहुन्छ । निबलियओविध चलणे वित्थारिय अहव मेलविउँ ॥॥काऊण चोलपट्ट
अविधीए नाभिमंडलस्सुवरि । हिट्ठा य जाणुमित्तं चिट्ठई लंबुत्तरस्सगं ॥ ५॥ उच्छाईऊण य थणे चोलगपट्टेण ठाइ उस्सम्गं । बसाइरक्खणट्ठा *अहवा अन्नाणदोसेणे ॥६॥ मेलितु पण्डियाओ चलणे विस्थारिऊण बाहिरओ। ठाउस्सम्म एसो बाहिरउद्धी मुणेयन्वो॥७॥ अंगुहे मेलविउ
विस्थारिय पण्हियाओ बाहिं तु। ठाउस्सगं एसो भणिओ अभितरुद्धित्ति ॥८॥कप्पं वा पट्टे वा पाइणि संजइत्य उस्सगं । ठाइ य स्खलिणं व जहा रयहरणं अग्गओ काउं ॥९|| भामेइ तहा दिढि चलचित्तो वायसुच उस्सग्गे । छप्पइआण भएणं कुणई अ पहुं कविट्ठ व ॥ १०॥ सीसं | कपमाणो जक्खाइव्व कुणइ उस्सम्गं । भूयच हुअहुअंतो तहेव छिर्जतमाईसु ॥ ११ ॥ अंगुलिभमुहाओपि य चालतो तय कुणइ |
७९८॥ उस्सगं । आलावगगणणट्ठा संठवणथं च जोगाणं ॥ १२ ॥ काउस्सगंमि ठिओ सुरा जह बुडबुडेइ अन्यत् । अणुपेहतो तह वानरुज्व चालेद ओढउडे ॥ १३ ॥ एए काउस्सग कुणमाणेण विबुहेण दोसा उ । सम्न परिहरियन्वा जिणपडिकुट्ठचिकाऊणं ॥ १४ ॥ 'नाभीकरयलकुप्पर उस्सारे पारियमि थुइ'त्ति नियुक्तिगाथाशकलं लेशतोऽदुष्टकायोत्सर्गावस्थानप्रदर्शनपरं विध्य-1
दीप अनुक्रम [६२]
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पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०] मूलसूत्र-[१] आवश्यक मूलं एवं हरिभद्रसूरि-रचिता वृत्ति: कायोत्सर्ग-संबंधी दोषाणां वर्णनं
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