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गम
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"आतुरप्रत्याख्यान" - प्रकीर्णकसूत्र-२ (मूलं संस्कृतछाया)
-------------------------------------- मूलं [१] ----------- पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-(२५), प्रकीर्णकसूत्र-२] आतुरप्रत्याख्यान मूलं एवं संस्कृतछाया
प्रत
सूत्रांक ||१||
___ अधातुरप्रत्याख्यानप्रकीर्णकम् ॥२॥ देसिफदेसविरओ सम्मपिट्ठी मरिज जो जीवो। त होइ बालपंडियमरणं जिणसासणे भणियं ॥१॥३४ पंच य अणुबयाई सत्त उ सिक्खा उ देसजइधम्मो । सवेण व देसेण व तेण जुओ होइ देसजई ॥२॥६५॥
ENCREAAAAACANCY
श्रीप
अनुक्रम
ॐॐॐॐ
अधातुरप्रत्याख्यानम् ।।२।। देशकदेशविरतः सम्पदृष्टिर्मियते यो जीवः । तद् भवति वालपण्डितमरणं जिनशासने भणितम् ।।१।। पचर
| देशयतिधर्मस्य व्याख्या एवं १२ व्रत-नामानि
मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..........आगमसूत्र - [२५], प्रकीर्णक सूत्र - [२] “आतुरप्रत्याख्यान" मूलं एवं संस्कृतछाया
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