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आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [५], ----------------------
-------------------- मल [१२२] + गाथा पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
प्रत सूत्रांक [१२२]
गाथा
गन्धिअरस फयागहराहिमकरवळपभविष्पगुफस्स दसवण्णरस कुसुमणिभरस्स तत्थ चित्तं जण्णुरसेहप्पमाणमित ओटिनिकरं करेता चन्दणभरवणवहरवेरु लिभविमलदण्डं कंचणमणिरयणभत्तिचित्तं कालागुरुपवरकंदुरानुरुमधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवष्टिं विणिमुक्त वेरुलिअमयं कडुन्छुभ पग्गहिन्तु पयएणं धूर्व दाऊण जिणवरिदस्स सत्तह पयाई ओसरिता दसंगुलि भंजलि करिन मत्थयमि पयओ अट्ठसयविसुद्धगन्धजुत्तेहिं महावित्तेहिं अपुणरुत्तेहिं अस्थजुत्तेहिं संथुणइ २त्ता वार्म जाणु अंचेइ २ त्ता जाप करबपरिमाहिले मत्थर अंजलि कटु एवं वयासी-णमोऽत्यु ते सिद्धबुद्धणीरयसमणसामाहिमसमत्तसमजोगिसलगत्तणणिम्भयणीरागदोसणिमामणिसंगणीसहमाणमूरणगुणरयणसीलसागरमणंतमप्पमेय भविभधम्मवरचाउरंतचकवट्टी णमोऽधु ते अरहोतिकटु एवं बन्दइ णभंसइ २ ताणचासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे जाच पज्जुवासय, एवं जहा अपचुनस्स तहा जाव ईसाणस्स भाणिअणं, एवं भवणवइवाणमन्सर जोइसिआ य सूरपज्जवसाणा सएणं परिवारेणं पत्ते २ अभिसिंचंति, तए ण से ईसाणे देविन्ये देवराया पच ईसाणे विउबह २ त्ता एगे ईसाणे भगवं तित्थयर करयलसंपुढेण गिहाइ २ ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सण्णिसणे एगे ईसाणे पिटुओ आयवर्त घरेइ दुवे ईसाणा उभओ पासिं चामरुक्खेवं फरेन्ति एगे ईसाणे पुरओ सूलपाणी चिट्ठद, तप णं से सके देविन्दे देवराया आमिओगे देवे सदावेश २ ता एसोवि तह चेव अभिसेआणत्ति देइ तेऽवि तह चेव उवणेम्ति, तए णं से सके देविन्दे देवराया भगवओ तित्थयरस्स चउहिसिं चत्ता रि धवलवसमे बिउन्वेइ सेए संखदलविमलनिम्मलदधिषणगोखीरफेणरयणिगरप्पगासे पासाईए दरसणिजे अमिरुवे पडिरूवे, तए णं तेसिं चउण्हं धवलयसभाणं अट्टहिं सिंगहितो अह तोमधाराओ णिग्गच्छन्ति, तए णं ताओ अट्ट सोभधाराओ उद्धं बेहासं उप्पयन्ति २ ता एगओ मिलायन्ति
दीप अनुक्रम [२४१-२४३]
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