________________
आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [३], ----------------------
------ मूलं [१३] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
प्रत
द्वीपशा
सूत्रांक
श्रीजम्बून्तिचन्द्रीया वृतिः ॥२२२॥
|३ वक्षस्कारे
सुषेणेन | तिमिश्रगुहादक्षिणकपाटोबाटास.५३
[43]
श्रीप
रतलवरमाविम जाप सस्थवाहप्पभियओ अप्पेगइआ उप्पलहत्थगया जाव सुसेणं सेणावई पिडओ २ अणुगछति, तए पं तस्स सुसेणस्स सेणावइस्स बहूईओ खुजाओ चिलाइआओ जाब इंगिअचिंतित्रपत्थिअविआणिआउ णिउणकुसलामो विणीआओ अप्पेगइभानो कलसहयगयाओ जाब अणुगच्छंतीति । तए णं से सुसेणे सेणावई सम्बिद्धीए सबजुई जाव णिग्योसणाइएणं जेणेव तिमिसगुहाए दाहिणिलस तुपारस्स कबाडा तेणेव उवागच्छइत्ता आलोए पणामं करेइरत्ता लोमहत्थर्ग परामुसहर त्ता तिमिसगुहाए दाहिणितस्स दुवारस्म कवाडे लोमहत्येण पमजइ २ चा दिव्याए उद्गधाराए अन्भुक्सेद २ ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितले चपए दलाइ २ ता अग्गेहिं बरेहिं गंधेहि अ मलेहि अ अक्षिणेइ २ ता पुष्फारुहर्ण जाव वत्थाहणं करेइ २ चा आसत्तोसत्तविपुलवट्ट जाव करेइ २ त्ता अच्छेहि सहेहि रययामएहिं अच्छरसातंडुलेहिं तिमिस्सगुहाए दाहिणिलस्स दुवारस्स कवाडाणं पुरओ अट्टडमंगलए आलिहइ तं०-सोस्थिय सिरिवच्छ जाव कयग्गहगहिअकरयलपब्भट्टचंदप्पभवहरवेरुलिअविमलदंडं जान धूर्व दलयइ २ ता वामं जाणु अंचेइ २ ता करयल जाव मत्थए अंजलि कटु कवाडाणं पणामं करेइ २ ता दंडरवणं परामुसह, तए णं तं दंडरयणं पंचलइ वइरसारमइ विणासणं सबसत्तुसेण्णाणं खंघावारे परवइस्स गदरिविसमपन्भारगिरिवरपवायाणं समीकरणं संतिकरं सुभकर हितकर रणो हिअइच्छिअमणोरहपूरग दिवमप्पडिड्यं दंडरयणं गहाय सत्तह पयाई पचोसका पचोसकित्ता तिमिस्सगुहाए दाहिणिलस्स दुवारस्स कवाडे दंडरयणेणं महया २ सरेणं तिक्युत्तो आउडेइ, तए णं तिमिसगुहाए पाहिणितस्स दुवाररस कवाडा सुसेणसेणावणा दंडरवणेणं महया २ सहेणं तिनुत्तो आवडिआ समाणा महया २ सदेणं कोंचारवं करेमाणा सरसरस्स सगाई २ ठाणाई पच्चोसकित्था, तए णं से सुसेणे सेणावई तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स
अनुक्रम
ecene
[७७]]
॥२२२॥
~99~