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आगम (१८)
“जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [३], ----------------------
-------- मूलं [६७] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति:
श्रीजम्बू
Casses
प्रत
न्तिचन्द्री-18 या वृचिः ॥२६१॥
श्वक्षस्कारे
भरतस्य | विनीतायां प्रवेशः मू. ६७
[६७]
२ चा जाव अहमभत्तं पडिजागरमाणे २ विहरइ । तए पं से भरहे सया अट्ठमभक्तसि परिणममाणसि पोसहसालाओ पडिषिक्वमइ २ चा कोर्चुचिअपुरिसे सदावेद २ ता तहेव जान अंजणगिरिकूडसमिभं गयवई परवई दूरूढे तं चेव सवं जहा वेडा णकार णव महाणिहिओ चत्तारि सेणाओ ण पविसंचि सेसो सो चेव गमो जाव जिग्घोसणाइपणं विणीआए रायाणीए मज्जामोणं जेणेव सए गिहे. जेणेव भवणवस्वडिसगपडिदुबारे वेणेव पहारेत्य गमणाए, लए गं तस्स भरहस्स रण्णो विषी रायवाणि मज्झमझेणं अणुपविसमाणस्स अप्पेगइआ देवा विणीअं रावहाणि सम्भंतरबाहिरिअं आसिअसम्मजिओवलितं करेंति अप्पेगइआ मंचाइमंचकलिअं करेंति, एवं सेससुवि परसु, अप्पेगइआ णाणाविहरागवसमुस्सियधयपडागामंडितभूमि अप्पेगा लाउल्लोइअमहिअं करेंति, अप्पेगइआ जाय गंधवटिभू करेंति, अप्पेगइआ हिरण्णवासं असिंति सुवण्णरवणक्दरआवरणवासं वासेंति, तए पं तस्स भरहस्स रणो विणीअं रायहाणि मझमझेणं अणुपविसमाणस्स सिंघाडम जाव महापहेसु बहवे अत्यत्थिआ कामस्थिआ भोगस्थिआ लाभत्थिा इद्धिसिआ किन्धिसिआ कारोडिा कास्त्राहिआ संखिया चकिमा मंगलिआ गृहमंगलिभा पूसमाणया बद्धमाणया लखमखमाइआ ताहि ओरालाहिं इवाहिं कताहिं पिशाहिं मणुनाहिं मणामाहिं सिवादि घण्याहिं मंगाहिं सस्सिरीआहिँ हिअयगमणिजाछि हिअवपल्हायणिज्नाहिं काहिं अणुवरवं अमिणदत्ता में अभिक्षुणता य एवं क्यासी-जय जय णया! जय जय भवा! भरं ते अजिअं जिणाहि जिअं पाळयाहि जिजमो क्साहि दो विक देवाण चंदो विव ताराणं चमसे बिव असुराण धरणे चित्र नागाणं बतूद पुक्सयसहस्साई बहूईओ पुब्बकोडीओ बने पुवकोटाकोडीओ विणीआए रायहाणीए पुणहिमवंतगिरिसागरमेरागस ब केवलकप्पस्स भरहस्स कासरस गामागरणगरखेडकच्चामडंबदोणशक्फ
दीप अनुक्रम [१२१]
Recene
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२६१॥
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