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________________ आगम (१८) “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति" - उपांगसूत्र-७ (मूलं+वृत्ति:) वक्षस्कार [२], ---------------------- ------- मूलं [२३-२४] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्ति: प्रत सूत्रांक श्रीजम्बू-18 द्वीपशा Kesedesesesese २वक्षस्कारे प्रथमारके नरावासा न्तिचन्द्रीया वृत्तिः [२३-२४ २३-२४ ॥१२०॥ दीप अनुक्रम [३६-३७] Daseen गंभंते! भरहे वासे सालीति वा वीहिगोहूमजवजवजवाइ वा कलममसूरमुग्गमास तिलकुलत्थणिप्फावआलिसद्गअयसिकुसुंभकोवकंगुषरगरालगसणसरिसवमूलगवीआइ वा !, हंता अस्थि, णो चेवण तेसिं मणुआणं परिभोगत्ताए हवमागच्छंति, अत्थि णं भंते ! भरहे बासे गढाइ वा दरीभोवायपवायविसमविजलाइ वा!, णो इसट्टे समडे, भरहे वासे बहुसमरमणिले भूमिभागे पण्णचे, से जहाणामए भालिंगपुक्सय वा०, अस्थि णं भंते ! भरहे वासे खाणूश वा कंटगतणयकयवराइ वा पत्तकयवराइ वा!, णोइणहे समहे, ववगयखाशुकंटगतणकयवरपत्तकयवराण सा समा पण्णता, अत्थि ण भंते ! भरहे वासे इंसाइ वा मसगाइ वाजूभाइ वा लिक्खाइ वा बिकुणाइ वा पिसुआइ वा,!, णो इणवे समडे, धवगयडंसमसगजूअलिक्सर्दिकुणपिसुआ उवदवविरहिआ ण सा समा पण्णत्ता, अस्थि णं भंते! भरहे अहीर या अयगराइ या 1, इंता अस्थि, णो चेवणं तेसिं मणुआणं आवाई वा जाव पगइभहया ण ते वालगगणा पण्णत्ता, अस्थि णं भंते ! भरहे टिंचाइ वा डमराइ वा कलहबोलखारवइरमहाजुद्धाइ वा महासंगामाइ वा महासत्थपडणाइ वा महापुरिसपखणाइ बा!, गोयमा ! णो इणढे समढे, ववगववेराणुबंधा णं ते मणुआ पण्णता!, अस्थि ण भंते ! भरहे वासे दुभूआणि वा कुलरोगाइ वा गामरोगाइ वा मंडलरोगाइ वा पोट्ट० सीसवेक्षणाइ वा कण्णोहअच्छिणइदंतवेअणाइ वा कासाइ वा सासाइ वा सोसाइ मा दाहाइ वा मरिसाद वा मजीरगाइ वा दओदराइ वा पंडुरोगाइ वा भगंदराइ वा एगाहिआइ वा पेआहिआइ वा तेआहिआइ वा घनत्वाहिभाइ बा इंदरगाहाद वा धामाहाइ वा खंदम्गहाइ वा कुमारग्गहाइ वा जक्खम्गहार का भूभग्गहाइ वा मच्छसूलाइ वा हिमयसूलाइ का पोट्ट० कुच्छि० जोणिसूलाइ वा गाममारीइ वा जाव सण्णिवेसमारीइ वा पाणिक्खया जणक्खया कुलक्खया वसणभूअमणारिआ !, गोयमा ! णो ण समढे, ववगयरोगायंका गं ते मणुआ पण्णत्ता समणासो! (सूत्र २४) 0000000000000 ॥१२०॥ EleEN ~252
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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