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________________ आगम (१८) प्रत सूत्रांक [२१] दीप अनुक्रम [३४] “जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र -७ (मूलं + वृत्तिः) वक्षस्कार [२], मूलं [२१] पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१८]उपांगसूत्र-[७] "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति" मूलं एवं शांतिचन्द्र विहिता वृत्तिः श्रीजम्बूद्वीपशान्तिचन्द्री - या वृत्तिः ॥१०९ ॥ J Ekemiint णिक्खा संटिअसुसिलिट्ठगूढगुल्फा एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणुपुवजंघा समुग्गनिमग्गगूढजाणू गयससणसुजायसण्णि| मोरू वरवारणमत्ततुलविक्रमविलासिअगई पमुइअवरतुरगसीहवरवट्टिअकडी वरतुरगसुजायगुज्झदेसा आहष्णहउद निरुवलेवा साहयसोणंदमुसलदप्पणणिगरि अवरकणगच्छरुसरिसवरवइवलिअमज्झा [शसविहगसुजाघपीणकुच्छी] झसोअरा सुकरणा गंगावतपयाहिणावत्ततरंगभंगुररविकिरणतरुणवोहिअआको सायं परमगंभीरविअडणाभा उज्जुमसमसंहिअजश्चतणुक सिणणिद्ध आदेजलडहसूमालमउअरमणिज्जरोमराई संणथपासा संगबपासा सुंदरपासा सुजीयपासा मिअमाइअपीणरइअपासा अकरंडुअकणगर अगणिम्मलसुजायणिरुवहयदेहधारी पसत्यबत्तीस लक्खणधरा कणगसिलाय - लुजलपसत्थसमतल उबइ अविच्छिण्णपिहुलवच्छा सिरिवच्छंकिअवच्छा जुअसण्णिभपीणरह अपीवर पडसंठिअमुसिलिट्ठविसिद्वषणथिरसुबद्धसंधिपुरवरवरफलिहबहिअभुजा भुजगीसर विउलभोगआयाणफलिहतच्छूट दीइवाहू रत्ततलोषइ अमउअमंसलमुजायपसत्थलक्खणअच्छिद्दजालपाणी पीवरकोमलवरंगुलीआ आयंबतलिणसुरुइलणिद्धणक्खा चंदपाणिलेहा | सूरपाणिलेहा संखपाणिलेहा चक्कपाणिलेहा दिसासोबत्थियपाणिलेहा चंदसूरसंखचक्कदिसासोबत्थि अपाणिलेहा अमेगव| रलक्खणुत्तमपसत्थसुइरद्द अपाणिलेहा वरमहिसवराहसी हसउसइणगवरपडिपुण्णविपुलबंधा चउरंगुल्सुप्पमाणकंतुवरसरिसगीवा मंसलसंठिअपसत्सहूलविपुलहणुआ अवट्ठिअमुविभत्तचित्तमंसू ओअवि असिलप्पवालबिंबफलसब्णिभाधरोट्ठा पंडुरससिसगल विमलणिम्मलसखगोखीरफेणकुंददगरयमुणालिआचवलदंतखेडी अखंडता अफुडिभयंता | Fur Ele&ae Cy ~ 230~ ৯১৩,১৩ 9752 २वक्षस्कारे युम्मिस्वरूपं सू. २१ ॥१०९॥
SR No.035023
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 23 Jambudwippragyapti Mool evam Vrutti Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages376
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size92 MB
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