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आगम (१६)
सूर्यप्रज्ञप्ति” – उपांगसूत्र-५ (मूलं+वृत्ति:)
प्राभृत [४], -------------------- प्राभृतप्राभृत -1, ------------ ----- मूलं [२५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र- [१६] उपांगसूत्र- [१] "सूर्यप्रज्ञप्ति मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति:
प्रत
सूर्यप्रज्ञप्तिवृत्तिः (मल०)
सुत्रांक
प्रमाणं सू२५
॥७५॥
[२५]]
दीप
बाहिं वित्थडा अंतो वट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसंठिया चाहिं सब्धिमुहसंठिया,उभयोपासेणं तीसे दुवे चाहाओ अवडियाओ प्राभृते भवंति, पणयालीसं २ जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे य णं तीसे बाहाओ अणवडिआओ भवंति, तंजहा-अम्भितरिया चेव तापक्षत्र: चाहा सबबाहिरिया चेव वाहा, तीसे ण सबभंतरिचा बाहा मंदरपबयंतेणं छ जोयणसहस्साई तिन्नि य चउबीसे जोय-II णसए छच्च दसभागा जोयणस्स परिक्खेवणं आहियत्ति वएज्जा, तीसे णं परिक्खेवविसेसे कओ आहिवत्तिवएज्जा ?, ता जेणं मंदरस्स पबयस्स परिक्खेवे ते गं दोहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एसप परिक्खेवविसेसे आहियत्ति वएज्जा', ता से णं तावक्खेत्ते केवइयं आयामेणं आहियत्ति वएजा?, ता तेसीइ जोयणसहस्साई तिनि तेत्तीसे जोयणसए जोयणतिभाग आहियत्ति वएज्जा, तया णं किंसंठिया अंधकारसंठिई आहिअत्ति वइज्जा, ता उड्डीमुहकलंबुयापुप्फसंठाणसंठिया आहियत्ति वएज्जा, अंतो संकुडा बाहिं वित्थडा अंतो चट्टा बाहिं पिहला अंतो अंकमुहसठिया है बाहिं सस्थिमुहसंठिया उभओ पासेणं तीसे दुवे बाहाओ भवंति, पणयालीसं २ जोयणसहस्साई आयामेणं, दुवे व णं
तीसे पाहाओ अणवाहियाओ भवंति, तंजहा-सबभतरिया चेव बाहा सबबाहिरिया चेव बाहा, तीसे णं सबभतरिया 2 प्रवाहा मंदरपत्यंतेणं नव जीयणसहस्साई चत्तारि य छलसीए जोयणसए नव य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवणं आहि
यत्ति वएज्जा, ता जे णे मंदरस्स पबयस्स परिक्खेवे तं परिक्खेवं तिहिं गुणित्ता दसहिं छित्ता दसहिं भागे हीरमाणे, एस सण परिक्खेवविसेसे आहियति वएज्जा, तीसे णं सबबाहिरिया बाहा लवणसमुदंतेण चउणउई जोयणसहस्साई अह य
अहढे जोयणसए चत्वारि य दसभागे जोयणस्स परिक्खेवेणं आहिए इति वएज्जा, ता एस णं परिक्खेवविसेसे को
अनुक्रम
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॥७५।।
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