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________________ आगम (१५) “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१०], ------------ उद्देशक: -, ----------- दारं [-], ----------- मूलं [१५७-१५८] + गाथा:(१-५) पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५७-१५८] + गाथा: प्रज्ञापना-पाठसिद्धं, भावितार्थत्वात् , नपरं षट्प्रदेशादिचिन्तायां प्रतिषेध्या भशाः स्तोका इति लाघवार्थ त एष संगृहीताः१०चरमायाः मल- इहानन्तरं स्कन्धाना चरमाचरमादिवक्तव्यतोक्ता, स्कन्धाश्च यथायोगं परिमण्डलादिसंस्थानवन्तो भवन्ति इत्यतः चरमपदं यवृत्ती. IS संस्थानवक्तव्यतामाह॥२४॥ कह णं भंते ! संठाणा पं०, गो० पंच संठाणा पं०, तं०-परिमंडले बट्टे तसे चउरंसे आयते य । परिमंडला पं भंते ! संठाणा किं संखेजा असंखेजा अर्णता, गो! नो संखिज्जा नो असंखेजा अर्णता, एवं जाव आयता । परिमंडले ण भंते ! संठाणे किं संखेञ्जपएसिए असंखेञ्जपदेसिए अणंतपदेशिए, गो०! सिय संखेजपएसिए सिय असंखेञ्जपएसिए सिय अणंतपदेसिए एवं जाव आयते । परिमंडले णं भंते ! संठाणे संखेजपएसिए कि सैखेजपएसोगाढे असंखे अपएसोगाढे अणंतपएसोगाढे, गो.! संखेजपएसोगाढे नो असंखेजपएसोगाढे नो अर्थतपएसोगाढे, एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपएसिए कि संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे अर्थतपएसोगाढे, गो! सिय संखेजपएसोगाढे सिय असंखेजपएसोगाढे नो अर्णतपएसोगाढे एवं जाव आयते, परिमंडलेणं भंते ! संठाणे अणंतपएसिए कि संखेजपएसोगाढे असंखेजपएसोगाढे अर्णतपएसोगाढे, गो.! सिय संखेजपएसोगाढे सिय असंखेजपएसोगाढे नो अर्थतपएसोगाडे, एवं जाव आयते । परिमंडलेणं भंते ! संदाणे संखेजपएसिए संखेजपएसोगाढे किं चरमे अचरमे चस्माई अचरमाई चरमंतपएसा अचरमंतपएसा, गो.! परिमंडले ण संठाणे संखेजपएसिए संखेजपएसोगाडे selesesee दीप अनुक्रम [३६४-३७१] eacher ॥२४२॥ ~88~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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