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________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [१०], --------------- उद्देशक: -1, -------------- दारं -1, -------------- मूलं [१५९] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१५९] नो चरमे नो अचरमे नो चरमाई नो अचरमाई नो चरमंतपएसा नो अचरमंतपएसा, नियमं अचरमं चरमाणि य चरमतपएसा य अचरमंतषएसा य, एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपएसिए संखेज्जपएसोगाडे किं चरमे पुच्छा, गो०! असंखेजपएसिए संखेजपएसोगाढे जहा संखेजपएसिए, एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते ! संठाणे असंखेजपएसिए असंखेजपएसोगाढे किं चरमे पुच्छा, गो! असंखिञ्जपएसिए असंखिजपएसोगाढे नो चरमे जहा संखेजपदेशोगाढे एवं जाव आयते, परिमंडले णं भंते! संठाणे अणंतपएसिए संखिज्जपएसोगाढे किं परमे० पुच्छा, गो०) तहेव जाव आयते, अपंतपएसिए असंखेज्जपएसोगाढे जहा संखेजपएसोगाढे, एवं जाव आयते । परिमंडलस्सणं भंते! संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स अचरिमस्स य चरिमाण य चरमंतपदेसाण य अचरमंतपएसाण य दवयाए पएसट्टयाए दबट्टपएसट्टयाए कयरेशहितो अ० ब० तु. वि०१, गो० सवत्थोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दबट्टयाए एगे अचस्मेि चरिमाई संखेजगुणाई अचरमं चरमाणि य दोकि विसेसाहियाति पदेसट्टयाए सवत्थोवा परिमंडलस्स संठाणस्स संखिजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स चरमंतपएसा अचरमंतपएसा संखज्जगुणा चरमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया दबट्टपएसट्टयाए सबथोवे परिमंडलस्स संठाणस्स संखेजपएसियस्स संखेजपएसोगाढस्स दबट्टयाए एगे अचरिमे चरिमाई संखेज्जगुणाति अचरमं च चरमाणि य दोवि विसेसाहियाति चरमंतपएसा संखेजगुणा अचरिमंतपएसा संखेझगुणा चरिमंतपएसा य अचरमंतपएसा य दोवि विसेसाहिया एवं वट्टतंसचउरंसायएसुवि जोएयो । परिमंडलस्स पं. भंते ! संठाणस्स असंखेजपएसियस्स संखेजपए दीप अनुक्रम [३७२] esercerceaeesereecedede Heretaurary.org ~89~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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