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आगम
(१५)
प्रत
सूत्रांक
[२८४]
दीप
अनुक्रम [५२९]
• मूलं [ २८४]
पदं [२२], -------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [-], पूज्य आगमोद्धारकश्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र [१५],उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्तिः
प्रज्ञापना
याः मल
य० वृत्ती. ॥४४६ ॥
“प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र - ४ ( मूलं + वृत्तिः )
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नेरयाणं भंते ! कति किरियातो पं० १, मो० ! पंच किरियातो पं० तं० आरंभिया जाब मिच्छादंसणवत्तिया, एवं जाव वैमाणियाणं । जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया क० तस्स परिग्गहिया किं कअति ? जस्स परिग्गहिया कि० तस्स आरंभिया कि० १, गो० ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया कि० तस्स परिग्गहिया सिय कजति सिय नो कजति, जस्स पुण परिग्गहिया किरिया क० तस्स आरंभिया कि० णियमा क०, जस्स णं भंते ! जीवस्स आरंभिया कि० क० तस्स मायावतिया कि० क० पुच्छा, गो० ! जस्स णं जीवस्स आरंभिया कि० क० तस्स मायावत्तिया कि० नियमा क० जस्स पुण मायावत्ति० कि० क० तस्स आरंभिया कि० सिय कजति सिय नो क०, जस्स णं भंते ! जीवस्त्र आरंभिया कि० तस्स अपच्चक्खाण किरिया पुच्छा ?, गो० ! जस्स जीवस्स आरंभिया कि० तस्स अपचक्खाणकिरिया सिय कजति सिय नो० क० जस्स पुण अपचक्खाण किरिया क० तस्स आरंभिया किरिया णियमा क०, एवं मिच्छादंसणवत्तियाएव समं, एवं पारिग्गहियाचि तिहिं उबरिल्लाहिं समं संचारेतवा, जस्स मायाबत्तिया कि० तस्स उवरिल्लाओ दोवि सिय कति सिय नो कअंति, जस्स उवरिखाओ दो कर्जति तस्स मायावत्तिया णियमा कज्जति, जस्स अपचक्खाणकि० क० तस्स मिच्छादंसणबत्तिया किरिया सिय कज्जति सिय नो कजति, जस्स पुण मिच्छादंसणवत्तिया कि० तस्स अपच्चक्खाणकिरिया णियमा कञ्जति । नेरइयस्स आइडियातो चत्तारि परोप्परं नियमा कञ्जति, जस्स एताओ चत्तारि कांति तस्स मिच्छादंसणवतिया कि० भजति, जस्स पुण मिच्छादंसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स एतातो चत्तारि नियमा कति एवं जाव थणियकुमारस्स, पुढविकाइयस्स जाव चउरिंदियस्स पंचवि परोप्परं नियमा कञ्जंति,
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अत्र मूल-संपादने सूत्र क्रमांकन स्थाने पुनः एका स्खलना दृश्यते— (सूत्रं २८३) स्थाने (सूत्रं २८४) द्वि-वारान् मुद्रितं
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२२ क्रियापदे क्रि
याणां सहभावः सू. ૨૮:
॥४४६ ॥