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________________ आगम “प्रज्ञापना" - उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], --------------- उद्देशक: [-], -------------- दारं [८], -------------- मूलं [१४५] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक प्रज्ञापना- या मल- य०वृत्तो. ॥२१८॥ तदा एकेन मम्देन द्वाभ्यां त्रिभिर्वा मन्दतरेण त्रिभिश्चतुर्मिळ मन्दतमेन पञ्चभिः पद्भिः ससभिरष्टमिळ, ह जासादिनाम्नामाकर्षनियम आयुपा सह बध्यमानानामवसातव्यो न शेषकालं, कासांचित् प्रकृतीनां ध्रुवन्धिनीत्वा- दपरास परावत्तेमानत्वात् प्रभूतकालमपि बन्धसम्भवेनाकर्षानियमात् । इति श्रीमलयगिरिविरचितायां प्रजापना- टीकायां व्युत्क्रान्त्याख्यं षष्ठं पदं समाप्तम् । व्युत्कान्तपर्दे युवन्य भेदाः अल्पबहुत्वं [१४५] दीप अनुक्रम [३५२] इति श्रीप्रज्ञापनासूत्रे श्रीमन्मलयगिरिसरिवर्यविरचितं व्युत्कान्त्याख्यं षष्ठं पदं समासम्॥ २१८॥ e अत्र पद (०६) “व्युत्क्रान्ति/ (उपपात-उद्वर्तना)" परिसमाप्तम् ~ 40~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
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