SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 29
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम “प्रज्ञापना” – उपांगसूत्र-४ (मूलं+वृत्ति:) पदं [६], ------------ उद्देशक: [-], ----------- दारं [७], ----------- मूलं [१२९-१३७] + गाथा: पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[१५]उपांगसूत्र-[४] "प्रज्ञापना" मूलं एवं मलयगिरि-प्रणीता वृत्ति: प्रत सूत्रांक [१२९ -१३७] गाथा: easeseseserverseerecenese देवबोहितो उववअंति, वणस्सइकाइया जहा पुढविकाइया ॥ (सूत्र१३१) इंदिया तेइंदिया चउरिदिया एते जहा तेउवाऊ देवयजेहिंतो भाणियथा । (सूत्रं१३२)पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते कोहिंतो उववजेति', कि नेरइएहिंतो उ० जाव किं देवेहिंतो उवयजति ?, गोयमा! नेरइएहितोवि तिरिक्खजोणिएहितोवि मणुस्सेहिंतोवि देवेहिंतोवि उववअंति, जब नेरइएहितो उपवअंति किं स्यणप्पभापुढविनेरइएहिंतो जाव आहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतो उववजति ?, गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरहएहितोवि उववजति जाव अहेसत्तमापुढविनेरइएहिंतोवि उववअंति, जइ तिरिक्खजोणिएहितो उववजंति कि एगिदिएहितो उववअंति जाव पंचिदिएहिंतो उववअंति, गोयमा! एगिदिएहितोवि उववअंति जाव पंचिदिएहिंतोवि उपयजति, जइ एगिदिएहिंतो उववअंति किं पुढविकाइएहिंतो उववजंति एवं जहा पुढविकाइयाणं उववाओ भणिओ तहेव एएसिपि भाणियबो नवरं देवेहिंतो जाच सहस्सारकप्पोबगवेमाणियदेवेहितोवि उववअंति नो आणयकप्पोबगवेमाणियदेवेहिंतो जाव अधुएहिंतोवि उववजंति (मूत्रं १३३) मणुस्सा णं भंते ! कओहितो उववअंति किं नेरहएहिंतो उववअंति जाव देवेहितो उववअंति, गोयमा! नेरइएहिंतोवि उववजंति जाव देवेहिंतोवि उववअंति, जड़ नेरइएहिंतो उववअंति कि रयणप्पभापुढविनेरइएहितो उपवअंति कि सकरप्पभापुढविनेरइएहितो उववजंति किं वालुयप्पभापुढविनेरइएहितो पंकप्पभा हितो धूमप्पभा हितो तमप्पभा हितो अहेसत्तमापुढविनेरइएहितो उववजंति ?, गोयमा ! स्यणप्पभापुढविनेरइएहिंतोवि जाव तमापुढविनेरइएहिंतोवि उबवजंति, नो अहेसचमापुढविनेरहपहिंतो उववअंति, जइ तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति किं एगिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति एवं जेहिंतो पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं दीप अनुक्रम [३३४ -३४४] ~29~
SR No.035019
Book TitleSavruttik Aagam Sootraani 1 Part 19 Pragyapana Mool evam Vrutti Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherVardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
Publication Year2017
Total Pages514
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size109 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy